4/07/2010

अभिज्ञात के रूप में कहानी का फिर एक तारा चमका है- संजीव


कोलकाताः अभिज्ञात के रूप में कहानी का फिर एक तारा चमका है। एक जीवंत कथाकार की पुस्तक 'तीसरी बीवी' के लोकार्पण में मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। वे उम्र में छोटे हैं, लेकिन उनके अनुभव की एक बड़ी दुर्जेय दुनिया है जो उनके डेग और डग को विरल और विशिष्ट बनाती है। यह कहना है प्रख्यात कथाकार और 'हंस' के कार्यकारी संपादक संजीव का। भारतीय भाषा परिषद सभागार में 6 अप्रैल 2010 मंगलवार की शाम अभिज्ञात के कहानी संग्रह 'तीसरी बीवी' का लोकार्पण करते हुए उन्होंने यह बात कही।
उन्होंने कहा कि 2004 में मैंने कोलकाता में 15-20 कथाकारों को इंट्रोड्यूज करने में अपनी भूमिका निभाई थी।
उन्होंने कि मैं पूर्व वक्ता अरुण माहेश्वरी के तर्कों को नहीं मानता कि अभिज्ञात ने घटनाओं को जस का तस धर दिया और अपनी ओर से कुछ कहने की कोशिश उनमें नहीं दिखती या कि कोई दिशा निर्धारित नहीं करते। पूर्व वक्ता हितेन्द्र पटेल की उन आशंकाओं को भी दरकिनार करता हूं कि किसी भी लेखक को अपनी महत्ता साबित करने के लिए दिल्ली से सर्टीफिकेट लेने की आवश्यकता है और ऐसे में मुमकिन है अभिज्ञात जैसे कथाकार की रचना अलक्षित रह जाये।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डॉ.विजय बहादुर सिंह की इस बात को कि 'लेखक की रचना में वह न खोजें जो उसने नहीं दिया है जो दिया है उस पर बात की जाये', आगे बढ़ाते हुए संजीव ने कहा कि साहित्य के तयशुदा मानकों से हटकर यह देखना चाहिए कि लेखक ने अपने बेस्ट अंदाज में क्या दिया है। दिगंत अनन्त हैं। लोग तो चिन्दियों से चित्र बना रहे हैं और उनकी प्रशंसा कर उनका सर्वनाश किया जा रहा है। अभिज्ञात को ऐसी वाहवाही नहीं चाहिए। मैंने उनकी दो कहानियां 'हंस' में छापी हैं। उनकी कहानियों के जो दायरे हैं उनमें द्वंद्व के नये क्षेत्र, आस्था के नये बिन्दु हैं।
उन्होंने समकालीन कथा-संसार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे धन्य हैं जो प्रयोग के लिए प्रयोग और कला के लिए कला का सहारा लेते हैं। पुनरुत्थानवाद फिर आ गया है जिसके परचम लहराये जा रहे हैं। नये कथाकारों की फौज़ आयी है। भाषा के एक से एक सुन्दर प्रयोग हो रहे हैं। अगर वे अपनी आत्ममुग्धता को सम्भाल लें तो बहुत है। अभिज्ञात की राह उनसे अलग है।
मेरे पास 'हंस' में प्रकाशनार्थ रोज दस से बारह कहानियां आती हैं। भूमंडलीकरण का प्रकोप मुझ पर भी पड़ा है और कनाडा से लेकर स्पेन तक से फ़ोन आते हैं कि मुझे बताइये मेरी कहानी क्यों नहीं छपेगी? मैं विनम्र निवेदन करता हूं कि साहित्य कूड़ेदान नहीं है। इसमें युयुत्सा व घृणा के लिए जगह नहीं है। मैं कहता हूं साहित्य की शर्त पर आओ। लोग पूछते हैं
तो शर्त बतायें क्या शर्त है साहित्य की। मैं कहता हूं-एक ही शर्त है साहित्य की, वह है उदात्तता। वह नहीं है तो शर्त पूरी नहीं होती। अभिज्ञात ने धीमे अन्दाज में उधर कदम बढ़ाये हैं। धन्यवाद के पात्र हैं। क्रेज़ी फ़ैण्टेसी की दुनिया, मनुष्य और मत्स्यकन्या, देहदान जैसी कहानियां बिल्कुल निराले अन्दाज़ की कहानियां हैं। देहदान कहानी में लाश को टुकड़े-टुकड़े काटकर बेच दिया जाता है और बता दिया जाता है कि लाश को चूहे खा गये।
संजीव ने कहा कि दलित, नारी, शोषक-शोषित के संघर्ष तक कहानी का दायरा सिमटा हुआ था। अभिज्ञात ने दायरे का विस्तार किया है। आस्मां और भी हैं। हम उनसे मुक्त नहीं हो सकते। पीछे मुड़ के मत देखिये। अभिज्ञात ने द्वंद्व, आस्था के नये दिगंत खोले हैं। नये अनछुए दिगंत खोले हैं।
कहानी में बिम्ब कैसे बनते हैं और किस प्रकार के निर्वाह से वे अलंकरण नहीं रह जाते यह बड़ी कला है। इससे भाषिक संरचनाएं दीर्घजीवी हो जाती हैं। अभिज्ञात जी ने विज्ञान को लेकर मिथ बनाया है। कैसे मिथ बनता है यह उनकी कहानी में देखने लायक है।
कार्यक्रम की शुरुआत हितेन्द्र पटेल के वक्तव्य से हुई। उन्होंने 'तीसरी बीवी' की कहानियों पर कहा कि अभिज्ञात कई बार असुरक्षित परिवेश में रह रहे लोगों की ज़िन्दगी से अपनी कहानियां एक संवेदनशील तरीके से उठाते हैं। 'उसके बारे में' कहानी ऐसी ही कहानी है। जिसमें दर्द के रिश्ते की शिनाख्त की गयी है। असुरक्षित होते लोगों की ये बेचैन कहानियां ऐसी हैं जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होनी चाहिए। जबकि'क्रेजी फैंटेसी की दुनिया' इससे भिन्न एक क्लासिक फलक वाली है। इन कहानियों में वह तत्व है जिसे निर्मल वर्मा के शब्दों में 'मनुष्य से ऊपर उठने का साहस' कहा है।
जीवन सिंह ने कहा कि 'क्रैजी फैंटेसी की दुनिया' में कहा गया है कि शासन बदलता है लेकिन तंत्र नहीं बदलता। यह वस्तुस्थिति की गहरी पड़ताल से कथाकार ने जांचा-परखा है। लेखक जिन स्थितियों में जी रहा है उससे लिखने की रसद कैसे प्राप्त करता है उसका उदाहरण 'कायाकल्प' जैसी कहानियां हैं। अभिज्ञात की 'जश्न' जैसी कहानियों में एक विद्रोह है, जो थमना नहीं चाहता है, नजरुल की तरह-'आमी विद्रोही रणक्रांत'।
अरुण माहेश्वरी ने कहा कि 'तीसरी बीवी' संग्रह की कहानियां पढ़कर राजकमल चौधरी की याद आती है। इन्हें पढ़कर एक गहरा व्यर्थताबोध, डिप्रेशन पैदा होता है। सब कुछ व्यर्थ, कुछ भी सकारात्मक नहीं है। कुछ कहने की इच्छा न हो तो बस कच्चा माल इकट्ठा होता रहता है। हिन्दी कहानी परिपक्व हो चुकी है। उदय प्रकाश जैसे कुछ कथाकार हैं जिन्होंने अछूते कोणों को छुआ है।
संजीव जी ने कार्यक्रम के दूसरे चरण में अपनी रचना प्रक्रिया, अपने जीवन अनुभव व प्रेरक तत्वों की खुलकर चर्चा की और श्रोताओं के सवालों की जवाब भी दिये। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ बंगला कवि अर्धेन्दु चक्रवर्ती ने की।