2/11/2015

शील का पत्र अभिज्ञात के नाम

लेखकों के पत्र

                                            128/249 के ब्लाक, किदवई नगर, कानपुर
कवि, नाटककार, उपाध्यक्ष जनवादी लेखक संघ-केन्द्रीय कमेटी
प्रिय अभिज्ञात!                                          9 मई 1993
'सरापता हूं' कि कविताओं में भाई सकलदीप सिंह की सारगर्भित व्याख्या अध्ययन के लिए बाध्य करती है। इस संग्रह की कविताएं सरलता और जटिलता का संगम हैं। कविताओं में अभिव्यक्ति को व्यक्त करने की शैली- शिल्प कथ्य में कवि की अपनी पहचान है राजनीति में अतीत तिरोहित होता है पर साहित्य में सामान्यजन की पक्षधरता की जीवनोन्मुखी उर्जा होती है।
साहित्य में अतीत को नकारने और स्वीकारने में सृजनकर्ता का दृष्टिकोण होता है। हम किस अतीत को नकारते हैं देखें-'वेदों की अवधि विडम्बना से अभेद्य तोड रहा/गति अवरोध युग युग का।
'मेरे पूर्वज में- 'अपने होने को तुमने मुझमें रोपा थोपा है/इस कारण मैं अपने को नकारता हूं मेरे पूर्वज यहां व्यक्तिगत पारिवारिक जीवन की परिस्थिति ही झलकती है। लेकिन-'भरे हुए थनों की तरह दुहे जाने को आतुर/मेरे विश्वास तुम लौटो यह सृजनात्मक प्रक्तिया का प्रतीक है। मैं भाव की समृध्दि के प्रति आश्वस्त हूं।
भवदीय
शील