3/08/2015

डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र का पत्र अभिज्ञात के नाम

आपने तो चौंका दिया। कलकत्ता में रचे-बसे पत्रकार झाल-मूडी खाकर गुजर कर
लेंगे मगर कभी बर्दवान से आगे बढने का साहस नहीं करेंगे। मगर आपने ऐसी छलांग
मारी कि बरसाती मेढकों के भी कान काट लिए। मुझे गुरूर था कि मैं ही छलांग मार
सकता ं- समस्तीपुर से काशी, काशी से कलकत्ता, कलकत्ता से देहरादून। मगर आपे
मुझसे भी लम्बी छलांग लगा गए-बिल्कुल हनुमान कूद।
कई प्रश्न मन में उठ रहे हैं? कलकत्ता कब छोडा। अमर उजाला कब ज्याइन किया?
ब कहां है इस समय? सपरिवार आए कि अकेले? आपने फोन नंबर नहीं दिया है
वरना बात करता।
यह भी संयोग है कि मैं पिछले तीन दशकों से कवि-सम्मेलन की वजह से देश का
चप्पा-चप्पा छान मारा, मगर जालंधर तक कई बार जाकर भी अमृतसर नहीं गया।
शायद अब आपके साथ ही स्वर्ण मंदिर जाकर मत्था टेकना लिखा है। हम
कलमजीवियों के लिए तो सबसे बडे देवता वही हैं -गुरु ग्रंथ साहिब। आप रहेंगे साथ
तो वहां के साहित्यकारों से भेंट हो जाएगी।
उमर उजाला उगता हुआ सूरज है। आपने इसमें आकर अच्छा किया। इससे आप आगे
बढ सकेंगे।
आपके संग्रह पर अभी नजर ही दौडा पाया। इस संग्रह की कुछ ही कविताएं मैंने
देखी है, जो अच्छी लगी। वापसी पराजय नहीं संक्षिा होकर भी बहुत बात कह जाती
है।
18 अगस्त 2001
मुख्य प्रबंधक (राजभाषा)
ऑयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन लिमिटेड
तेल भवन, देहरादून-248 001