एक पुरानी पेंटिंग सहसा मिल गयी। इसे मैंने
सकलदीप सिंह के काव्य संग्रह ईश्वर को सिरजते हुए के लिए बनाया था। यह पेपर
पर जलरंगों से बनी है। लगभग रफ पेज पर बनी है। लगभग 14 साल पहले की बनी
है। मैं इसका नाम ईश्वर को सिरजते हुए ही रखना चाहूंगा। उस दौर तक मैं अपने
पेंटिंग के शौक को संजीदगी से नहीं लेता था।...फिर भी उन दिनों सकलदीप
सिंह के अन्य काव्य संग्रहों प्रतिशब्द तथा निःसंग के आवरण चित्र भी बनाये
थे। मार्कण्डेय सिंह के कहानी संग्रह दूसरी भूमिका, कीर्त्ति नारायण
मिश्र के काव्य संग्रह विराट् वटवृक्ष के प्रतिवाद में, रवीन्द्र कुमार
सिंह के काव्य- संग्रह सरकारी लाश के आवरण चित्र मैंने ही बनाये थे। पंचदेव
व परशुराम द्वारा सम्पादित प्रकाशित लघुपत्रिका कालबोध के पहले अंक का
आवरण बनाया था। अपने काव्य-संग्रहों के आवरण चित्र तो खैर मैने ही बनाये
थे। एक अदहन हमारे अन्दर का आवरण चित्र तो गणेश पाईन तक को बेहद पसंद आया
था। हालांकि उन्होंने वादा किया था कि वे मेरे काव्य-संग्रह का आवरण चित्र
बनायेंगे किन्तु मैंने जो बनाया था उस पर वे मोहित थे... |
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