मुशायरा व कवि-सम्मेलन
कोलकाताः वरिष्ठ शायर कैसर शमीम की
अध्यक्षता में शनिवार 17 जनवरी की शाम मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन
दक्षिण कोलकाता के सनफ्लावर गार्डेन कम्युनिटी हाल में ‘कारवां’ की ओर से
किया गया। बांग्ला भाषा की फुल्लरा मुखोपाध्याय, हिन्दी के डॉ.अभिज्ञात,
जीतेन्द्र धीर, अगम शर्मा एवं उर्दू के हबीब हाश्मी, रफ़ीक अंजुम, अम्बर
शमीम, फराग रोहवी, कौसर परवीन, विजय शर्मा, मंजूर आदिल, अकबर हुसैन अकबर,
ज़मीर यूसुफ, नौशाद मोमिन, नसीम अजीजी, इरशाद आरजू, मुस्तफा अकबर ने अपनी
रचनाओं से उपस्थित श्रोता समुदाय को मंत्र मुग्ध कर दिया।
फुल्लोरा
मुखोपाध्याय की लाल साड़ी कविता ने सबको विशेष प्रभावित किया। डॉ.अभिज्ञात
ने अपनी भोजपुरी ग़ज़ल से अच्छा समां बांधा-‘सगरो ऐना चोरा के राखल बा। सच
के गहना चोरा के राखल बा। ऊ कसम खा के झूठ बोलै ले, प्रीत नैना चोरा के
राखल बा। केतनो पोस तू प्राण पाखी ह, ओकर डैना चोरा के राखल बा।‘ उन्होंने
अपनी प्रसिद्ध कविता पैसा फेंको भी सुनायी। कार्यक्रम का संचालन कर रहे
इरशाद आरजू की ग़जलें दिल को छू गयीं-‘लफ्ज़ों के इक ताजमहल में रक्खा है।
तेरा सुन्दर रूप ग़ज़ल में रक्खा है। पेड़ पे पत्थर फेंकने वाले क्या जाने,
सारा रस तो सब्र के फल में रक्खा है। उसकी आंखों से अनमोल बना है वो, वरना
आखिर क्या काजल में रक्खा है।‘ फराग रोहवी के शेरों पर लोग वाह-वाह करते
रहे-‘दिन में भी हजरते मेहताब लिये फिरते हैं। हाय क्या लोग हैं क्या
ख्वा़ब लिये फिरते हैं। वो कयामत से तो पहले नहीं मिलने वाला, किसलिए फिर
दिले बेताब लिये फिरते हैं।‘ उनकी एक और ग़ज़ल यूं थी-‘नये सांचे में ढलना
चाहता हूं। मैं पत्थर हूं पिघलना चाहता हूं। चिरागे अंजुमन कब तक रहूं मैं,
अब अपने घर में जलना चाहता हूं। बहुत नाराज़ हैं जिल्लेइलाही, मैं अब लहजा
बदलना चाहता हूं।‘ |
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