12/01/2008

अभिज्ञात के उपन्यास 'कला बाजार' का लोकार्पण


अभिज्ञात के उपन्यास 'कला बाज़ार' का लोकार्पण विख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह ने किया। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि कवि अभिज्ञात को मैं काफी बरसों से जानता हूं। वे गहरे सरोकार वाली कविताएं लिखते रहे हैं उनका एक उपन्यास पहले भी आया है। यह दूसरा उपन्यास है और किसी भी लेखक की पहचान उसकी दूसरी कृति से ही होती है क्योंकि एक कृति को कोई भी जोड़तोड़ करके लिख सकता है। कथाकार के तौर पर उनकी पुख्ता पहचान अब उनकी दूसरी इस कृति से बनेगी और विश्वास है कि कथा साहित्य में भी अपनी काव्यसंवेदना के कारण एक विशिष्ट पहचान बनाने में सफल होंगे। कार्यक्रम में भारतीय भाषा परिषद के निदेशक और प्रख्यात आलोचक डॉ.विजय बहादुर सिंह ने कहा कि अभिज्ञात के इस उपन्यास की भाषा में एक खास तरह का प्रवाह और पठनीयता है जो बरबस अपनी ओर खींचती है। वे लिखने के लिए नहीं लिखते बल्कि उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ है और उनका लेखन उद्देश्यपरक है। यहां यह उल्लेखनीय है कि उद्देश्यपरकता और पठनीयता को एक साथ साधना मुश्किल होता है, जिसमें अभिज्ञात सफल रहे हैं। वे भारत के बहुसांस्कृतिक परिवेश में विभिन्न संस्कृतियों के बीच के पुल की शिनाख्त करते इस उपन्यास में दिखायी देते हैं जो इस कृति को अर्थवान बनाता है। कार्यक्रम में कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.अमरनाथ शर्मा ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम कोलकाता के भारतीय भाषा परिषद में 22 नवम्बर, शनिवार की देर शाम हुआ। अभिज्ञात ने संवाददाताओं को बताया कि इसके पहले उनके छह कविता संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं यह उनकी आठवीं कृति है जिसे नयी दिल्ली के आकाशगंगा प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।

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