2/21/2009

अभिज्ञात के उपन्यास 'कला बाज़ार' का अंश रविवार डाट काम पर

'लेखक ने नारी शोषण के मुद्दे को बहुत संवेदना से प्रस्तुत किया है. पुरुष प्रधान समाज में इस तरह का होना कोई नई बात नहीं है.परंतु अब परिवर्तन आरंभ हो गया है, ये शुभ संकेत है. इस तरह की रचनाओं का प्रकाशन होना निश्चित रुप से सकारात्मक दृष्टिकोण है. इस प्रयास के लिये लेखक बधाई का पात्र है.'-पवन कुमार शर्मा, जालंधर
अभिज्ञात जी की रचनाओं का पहले ही मुरीद रहा हूं अब इस उपन्यास खंड को पढ़ने के बाद उनके प्रति आदर और बढ़ गया है। पिछले दिनों हंस में उनकी कामरेड और चूहे कहानी पढ़ी थी। उनकी किस्सागोई का एक और रूप सामने आया। देश के विभाजन के समय का पंजाब और विभाजन से स्त्रियों की हुई दुर्गति को समझने के लिहाज से यह उपन्यास महत्त्वपूर्ण है। सुरेन्द्र प्रसाद (prasadsurendra906@gmail.com) खड़गपुर
आपकी भी प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा है-अभिज्ञात

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