2/08/2010

उपन्यास के बहाने साहित्य और राजनीति के सम्बंधों पर जमकर हुई चर्चा



कोलकाताः (9 फरवरी) शंकर तिवारी के पहले उपन्यास ‘नई सुबह' का लोकार्पण प्रख्यात आलोचक डॉ.विजय बहादुर सिंह ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हिन्दी में उपन्यास विधा का ढांचा अब तक तैयार नहीं हुआ है। और यह उसकी सेहत के लिए ठीक है क्योंकि ढांचा तैयार हो जाने के बाद इस विधा की आज़ादी छिन जायेगी और ढांचा केन्द्रीय तत्व हो जायेगा। उन्होंने कहा कि साहित्य की दृष्टि से राजनीति को देखा जाना चाहिए। राजनीति की दृष्टि से जब साहित्य को देखा जाता है और तो साहित्य पतित होता है संस्कृति पर अंकुश लगने शुरू होते हैं। कार्यक्रम भारतीय भाषा परिषद में सोमवार की देर शाम तक चला। यह प्रफुल्ल चंन्द्र कॉलेज, (सिटी कालेज साउथ) के हिन्दी विभाग की ओर से आयोजित था।
इमरजेंसी के पूर्ववर्ती हालात और बाद की राजनीतिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि पर लिखे इस उपन्यास की चर्चा के क्रम में उन्होंने कहा कि राजनीतिक घटनाक्रम पर लिखे जाने के बावजूद इस उपन्यास में लेखक ने राजनीति नहीं की गयी है। जो एक बड़ी बात है।
कार्यक्रम के अध्यक्षीय वक्तव्य में ललित निबंधकार डॉ.कृष्णबिहारी मिश्र ने कहा कि महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण दो ऐसी प्रतिभाएं हैं जिन्होंने कुर्सी की राजनीति नहीं की। शंकर तिवारी ने नई सुबह उपन्यास में जेपी आंदोलन को उपन्यास की विषय वस्तु बनायी है और व्यवस्था में बदलाव की ललक उपन्यास में दिखायी है, जो सराहनीय है। संचालन करते हुए कथाकर डॉ.अभिज्ञात ने कहा कि मौजूदा राजनीति में व्याप्त अवसरवादिता को इस उपन्यास ने उजागर किया है। युवकों के स्वप्नों के साथ राजनीतिक छल को पूरी शिद्दत से उकेरा गया है। पत्रकार गीतेश शर्मा ने कहा कि जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा तो दिया किन्तु उसका कोई खाका प्रस्तुत नहीं किया। उन्होंने जो पांच सूत्र दिये थे उसमें दहेज प्रथा हटाने जैसे मुद्दे थे जो क्रांति नहीं समाज सुधार से जुड़े थे।
कथाकार अनय ने कहा कि शंकर तिवारी ने राजनीति के जोड़तोड़ की तो चर्चा की है किन्तु उसमें प्रतिपक्ष गायब है। कवि-आलोचक डॉ.सुब्रात लाहिड़ी ने उपन्यास में वर्णित एक संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि उपन्यास में बिहारी अस्मिता की बात कही गयी उसमें कोई हर्ज नहीं किन्तु यह बात की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि बंगाल में भाषा और क्षेत्रीयता को लेकर कोई भेदभाव नहीं है। और यहां का समाज किसी को मुद्दों पर समर्थन देता है या विरोध करता है। वरिष्ठ पत्रकार विश्वंभर नेवर ने कहा कि मौजूदा राजनीति से मोहभंग की कहानी है। राजनीति का मौजूदा स्वरूप उपन्यास के नायक को निराश और हताश करने वाला है। डॉ.राम आह्लाद चौधरी ने उपन्यास पर आलेख का पाठ किया और उसे एक बेहतरीन उपन्यास बताया जिसका घटनाक्रम दिलचस्प, फलक विस्तृत है। उपन्यास में मूल्य की तलाश पर जोर दिया गया है। कथाकार विमलेश्वर और विप्लवी हरेकृष्ण राय ने भी समरोह को सम्बोधित किया।

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