4/21/2024

अभिज्ञात के उपन्यास टिप टिप बरसा पानी की समीक्षा

पुस्तक समीक्षा एक सतरंगी प्रेम कथा -अनु नेवटिया *** पुस्तक - टिप टिप बरसा पानी लेखक -अभिज्ञात प्रकाशन- आनन्द प्रकाशन, 176/178 रवीन्द्र सरणी, कोलकाता-7 प्रकाशन-2024 मूल्य-225-/- **** कहते हैं कि कविता तब सफल मानों जब उसे महसूस किया जा सके और कहानी तब, जब वह दृश्यात्मक लगने लगे। ऐसी ही एक कहानी से सरोकार हुआ डॉ. अभिज्ञात के उपन्यास ‘टिप टिप बरसा पानी’ को पढ़ने के दौरान। किसी भी कहानी का शीर्षक उसके विषय वस्तु के बारे में बहुत कुछ कह जाता है और 'टिप टिप बरसा पानी' तो फिर आपको उस रूमानियत में ले जाता है जिसमें नायक और नायिका बारिश में गाना गा रहे हैं, जी हाँ यह उपन्यास भी ऐसी ही एक प्रेम कहानी है। किन्तु एकविध प्रेम कहानी न होकर ये आज के युवाओं द्वारा महसूस किए जाने वाले मिश्रित भावनाओं की कहानी है और यही बात इस उपन्यास को पाठकों के लिए और अधिक रुचिकर और दिलचस्प बनाती है। अगर हम पहले की प्रेम कहानियों की बात करें तो उनमें खलनायक घरवाले या समाज होते थे पर आज के युग में स्वयं का असमंजस ही प्रेम के रास्ते में सबसे बड़ा पत्थर साबित होता है। यह उपन्यास विशेषकर प्रेम को लेकर युवाओं की मनोस्थिति, कोमल भावनाएं, नासमझी और अंतर्द्वंद को उजागर करता है। उपन्यास चौदह खण्डों में बांटा गया है और न सिर्फ इस उपन्यास का शीर्षक अपितु इन खण्डों के शीर्षक भी आकर्षक हैं जैसे "लहंगा पड़ेगा बड़ा महंगा" , "दोई नैना मत खाईयो, पिया मिलन की आस" आदि। हर खण्ड एक नयी रंगभूमि सा प्रतीत होता है, जैसे इंटरवल के बाद सिनेमा में एक अलग मोड़ आ गया हो। उपन्यास का मुख्य चरित्र और इस प्रेम कहानी की नायिका है 'रम्या'। कथानक में प्रेम सम्बंधित अपेक्षाओं की पृष्ठभूमि है। मुख्य किरदार आज के ज़माने की युवती है जो पढ़ी लिखी है, आत्मनिर्भर है, अपने भविष्य और कैरियर के प्रति निष्ठावान है पर इसके बावजूद अपने व्यक्तित्व जीवन में अपनी पसंद और चाहत को लेकर अस्पष्ट है, क्योंकि उम्र और अनुभव दोनों कम है, वहीं नायक ‘अनिमेष’ एक उम्रदराज, अनुभवशील व्यक्ति है। जहाँ रम्या छोटी छोटी चीज़ों के बारे में अधिक सोचती है, तनाव में आ जाती है वहीं अनिमेष बड़ी से बड़ी फ़िक्र को भी हवा में उड़ाकर अपनी ही मौज में रहता है। इनके साथ ही अन्य किरदार समय समय पर कहानी को एक नया मोड़ देते हैं और आगे पढ़ने की उत्सुकता जगाते हैं। जिस सरलता और बारीकी से पात्रों का वर्णन डॉ. अभिज्ञात ने किया है, कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की हर एक किरदार जाना पहचाना सा लगता है। मुख्य कथानक के साथ डॉ. अभिज्ञात ने जिस खूबसूरती और दिलचस्प तरीके से अन्य घटनाओं को जोड़ा है, उसमें एक सुखद ज़ायका है, कहीं कोई रुकावट या बोरियत नहीं है। एक ऐसी प्रेम कहानी को पढ़ना वाकई दिलचस्प लगा जिसकी चर्चा गैंगटॉक की वादियों से लेकर अमेरिका की ऊँची इमारतों तक है। संवाद सरल और सहज हैं जो पाठक को कहानी से जोड़े रखता है, शब्दों की अनावश्यक नक्काशी नहीं है जो वास्तविकता से दूर ले जाती हो। यह उपन्यास केवल प्रेम से जुडी अपेक्षाएं ही नहीं महत्वाकांक्षाओं पर भी प्रकाश डालता है। यहाँ प्रेम कभी एक कोमल एहसास है, कभी पाने की ज़िद्द, कभी प्रतीक्षा तो कभी एक मौन त्याग। कथानक इन्हीं उचित- अनुचित, बोध और अबोध भावनाओं के बीच आवाजाही करता है और फिर धीरे धीरे एक-एक परत खुलती जाती है, तब दिल और दिमाग के बीच के अंतर्द्वंद का चश्मा भी साफ़ हो जाता है। उपन्यास का आखरी पन्ना एक सुखांत है जहाँ प्रेम किसी भी बंधन, उम्र और उम्मीदों से परे हैं, जिससे कोई कितना भी दूर जाए, कितना भी नज़रअंदाज़ करे, उसे लौटकर आना यहीं है। ईमेल - anunewatia1@gmail.com

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