10/24/2010

दंश

-श्यामल कांति दास
बंगला से अनुवाद-डॉ.अभिज्ञात
कई दिनों से नहीं बही हवा
फूल नहीं खिले
बाग में कई दिनों से
कली से आकांक्षाएं नहीं उठीं आकाश में
कई दिन वर्षा में भींगते, आग से गुज़रते कट गया जीवन
कांटे की चुभन से आंखें हो गयीं रक्ताक्त
कई दिनों तक देखा
नहीं हुआ मेल-मिलाप
वनवास में तीर-धनुष के पास गुज़र गया शांत-नीरव
जीवन

कई दिनों से नहीं आया
आंधी-तूफान
एक भी बात नहीं हो पायी-तुमसे
आज पत्थरों की ओर बढ़ रहे हैं कदम
आगे की ओर बढ़ रहे हैं
इशारे

कई-कई दिनों बाद
आज घर द्वार की ओर
बढ़ रहा है प्रेम
प्रेम घना और
गहरा होकर कहता है
अपनी बात
घर द्वार और ज़मीन के साथ
सांप और बिजली के साथ
दंश सहते-सहते
गुज़र गया बाधाहीन बिखरा जीवन
कई दिनों से नहीं है धूप और आग
एक भी छंद नहीं लिख पाया तुम्हारे लिए
केवल रह-रह कर गीत बजा
घर द्वार छोड़कर शून्य में पत्थर को हिलाकर
देख नहीं पाया
तुम्हारा झाड़ियों में छिपा-विस्मित चेहरा।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहरी..अच्छा लगा पढ़कर.