10/31/2010

वापसी वापसी नहीं होती..



साभारः सखी, नवम्बर 2010
कहानी
उन्हें वापसी का इन्तज़ार था। हालांकि वे बहुत गहरे अर्थों में इतनी ज़ल्दी वापसी भी नहीं चाहते थे। वे चाहते थे अलका कुछ दिन या कुछ दिन और मुंबई रहे। वे अलका की उपलब्धिपूर्ण वापसी ही चाहते थे। संघर्ष के तो कई दिन कटे, कई महीने और कुछ साल। अब उपलब्धियों का दौर है तो वह अधिकाधिक ज़ारी रहे। भले इसके चलते बाप-बेटी मोहित और अनन्या को छोटे- मोटे कष्ट सहने पड़ें। स्वयं अलका की उपलब्धियों के आगे उनकी तकलीफ़े गौण थीं।
कोई परिचित जब आकर उनसे अलका के बारे में पूछता तो उन्हें यह बताते हुए बेहद खुशी होती कि वह इन दिनों में मुंबई में है और फ़िल्मी दुनिया में अभिनय के क्षेत्र में उसने कदम रखा है। फ़िलहाल तो उसे छोटे-मोटे काम मिल रहे हैं और इस बात की पूरी सम्भावना है कि उसे लीड रोल मिल जायेगा। कुछेक अख़बारों में नयी फ़िल्मों की घोषणाओं में उसे भी कास्ट किये जाने की ख़बरें थीं, जिन्हें वे सबको गर्व से दिखाते और लोग विस्मित रह जाते। अठाईस- तीस की आयु में एक शादीशुदा महिला मुंबई में फ़िल्म जगत में प्रवेश कर रही है जो उन्हीं के बीच की है। लोग इस बात के लिए उन दोनों की भूमिका को भी सराहते कि उन्होंने अलका को ऐसा वातावरण दिया कि वह यह सब करने की मानसिकता तैयार कर सकी। पारिवारिक सहयोग भी बड़ी चीज़ होती है। अमूमन परिवारों में स्त्रियों को काम-काज में ऐसा झोंक दिया जाता है कि उनके सपने दफ़न हो जाते हैं।
हालांकि यह कहना किसी हद तक ग़लत था कि यह अलका के सपने थे, जिन्हें पूरा करने वह कोलकाता से मुंबई गयी थी। यह सपने तो स्वयं मोहित के थे। उसी ने अलका में अभिनय के बीज बोये, उन्हें अंकुरित किया और उन्हें बड़े होते देखने के लिए भी आतुर रहा। अभिनेता तो वह ख़ुद है। कई नाटकों में उसने अभिनय किया है और कुछेक का निर्देशन भी लेकिन वह कभी मुंबई नहीं जा सका। पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को छोड़कर वह अपने सपने पूरे करने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाया। उसे पता था मुंबई की फ़िल्म नगरी में एक आम आदमी को लम्बा संघर्ष भी करना पड़ सकता है और क़ामयाबी अनिश्चित है, ऐसे में वह एक जमी- जमाई नौकरी छोड़कर यह रिस्क नहीं ले सकता। गांव में मां-बाप को हर माह कुछ न कुछ ऊपरी खर्च के लिए भेजना पड़ता है। थोड़ी बहुत खेती होती है जिससे उनकी हर तरह की ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाती थीं। और कोलकाता में बेटी एक महंगे अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल में पढ़ रही है।
मोहित ड¬ूटी से लौटकर नाटकों की दुनिया में व्यस्त हो जाता। उसका अपना एक ग्रूप था जिसमें वह लगातार किसी ने किसी नाटक की रिहर्सल में व्यस्त रहता और उसे पता ही नहीं चला कि कब उसने चालीसवें में कदम रखा। अलका से वह उम्र में 12 साल बड़ा था। शादी अरेंज मैरिज़ थी। अलका ने मैट्रिक किया था और उसके मां-बाप ने एक सैटल लड़के की खोज की तो मोहित उन्हें पसंद आ गया और इस बात की परवाह किये बिना की उम्र में काफी अन्तर है वे शादी लिए तत्पर हो गये।
तब तक मोहित रंगमंच की दुनिया में रम चुका था लेकिन अलका के कोई सपने नहीं थे। वह एक ऐसी कोरी स्लेट थी जिस पर कोई भी इबारत लिखी जा सकती थी। मोहित ने पहले तो उसे अध्ययन के लिए प्रेरित किया और उसने दसवीं के आगे के पढ़ाई जारी रखते हुए देखते ही देखते ग्रेज्युएशन कर लिया। फिर आगे.... मोहित ने अपने निर्देशन में होने वाले कुछ नाटकों में उसे अभिनय के लिए भी प्रेरित किया। अब उनका घर एक ऐसा स्कूल बन गया था जिसमें मोहित अलका को जब मन चाहा, अभिनय का प्रशिक्षण देने लगता। मोहित को कई बार लगता कि अलका में अभिनय की सशक्त प्रतिभा है। उसे यह भी लगता कि वह भले स्वयं फ़िल्मी दुनिया में नहीं जा पा रहा है अगर मौका मिला तो अलका को जाना चाहिए। अलका को अगर फ़िल्मों के लिए लम्बा संघर्ष करना भी पड़ा तो भी उनका जीवन यथावत चलता रहेगा क्योंकि आर्थिक इकाई अलका नहीं, वह स्वयं है।
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वह दिन भी आया जब सचमुच अलका को फ़िल्म में ब्रोक मिल गया। उनके एक परिचित आनंद तिवारी को फ़िल्म बनाने का शौक चर्राया और तिवारी के साथ फ्लाइट से अलका भी मुंबई चली गयी। तिवारी ने आ•ास्त किया था कि अलका को कोई छोटा-मोटा रोल अवश्य दिया जायेगा। वह मुंबई में उनकी पारिवारिक सदस्य के रूप में उनके साथ रहेगी और वह पूरी शूटिंग के दौरान यह देखेगी कि फ़िल्मी दुनिया के कामकाज के तौर-तरीके क्या हैं। वह इस दौरान मुंबई की फ़िल्मी दुनिया में अपने परिचय का दायरा भी बढ़ायेगी। अर्थात डेढ़-दो माह अलका के पास मुंबई में रहने का मुफ़्त ठिकाना और एक प्रोड¬ूसर के सम्पर्कों का फ़ायदा था... और एक फ़िल्म में छोटा सा रोल। बाकी समय में यदि वह और काम खोज लेती है मुंबई में अपना मुकाम बना लेगी वरना वापसी।
यह सब एक संघर्षशील कलाकार के लिए कम नहीं था। अलका से अधिक मोहित रोमांचित था। उसे पता था एक अपरिचित दुनिया में अलका जा रही थी किन्तु वह तिवारी के साथ थी जिससे उसकी बरसों की दोस्ती थी और वह जानता था कि तिवारी अलका को किसी मुसीबत में नहीं पड़ने देगा।
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जैसा सोचा गया था वैसा ही हुआ। जैसे पहले से लिखी गयी स्क्रिप्ट पर काम हो रहा हो। अलका को जो रोल मिला था उसको उसने बखूबी निभाया। कुछेक नाटकों में अभिनय और उससे बढ़कर विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं के लिए घर में किये गये रिहर्सलों का उसे भरपूर लाभ मिला। कैमरे के आगे न वह संवाद भूली न कोई स्टेप। एक मजे हुए कलाकार की तरह उसका अभिनय देख फिल्म-निर्देशक टिंकू दामले अभिभूत था। तिवारी की 'अखियां लड़ा लड़ा के' फ़िल्म की शूटिंग के बाद अलका को तिवारी के साथ ही लौटना था लेकिन वह दामले की अगली फ़िल्म की शूटिंग के लिए वहीं रह गयी।
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चालीस दिनों से इन्तज़ार कर रहे मोहित व अनन्या को और सब्रा करना पड़ा। अलका के फ़ोन आते कि उसकी अमुक-अमुक फ़िल्म में अभिनय के लिए बात चल रही है। और अमुक-अमुक फ़िल्म का काम शुरू हो गया है। वह नहीं लौट रही है क्योंकि अब मुंबई में उसका एक-एक दिन क़ीमती है। वह अब पछता रही है कि वह पहले ही मुंबई क्यों नहीं आयी। यहां इतना सारा काम है। उसकी युवावस्था का काफी समय निकल चुका है। काश वह पांच-दस साल पहले ही मुंबई आ गयी होती तो उसके पास अपना भविष्य संवारने के लिए कुछ समय होता। अब तो भागती हुई गाड़ी पकड़ने की स्थिति है। लोग-बाग उससे कहते हैं कि वह पहले क्या कर रही थी, पहले मुंबई क्यों नहीं आयी। उसमें टैलेंट है, वह खूबसूरत है, फ़ोटोजेनिक है बस उम्र कुछ ज़्यादा है। और लड़कियों के मामले में उम्र बहुत बड़ा फैक्टर है। हालांकि वह अपनी उम्र बीस-एक्कीस ही बताती थी। यह बात और है कि किसी को उसके उम्र सम्बंधी दावे पर संदेह नहीं हुआ। वह अपने विवाहित होने के सवालों पर भी टालती रही ऐसे में अपनी बेटी के ज़िक्र का तो सवाल ही नहीं था।
फिर वह दिन भी आया जब उसे एक फ़िल्म में लीड रोल मिला था। और अख़बारों में इसकी चर्चा भी प्रकाशित हुई थी जिसमें अलका को अविवाहित बताया गया था। अलका ने इस सम्बंध में फ़ोन करके उन्हें बताया था कि यह फ़िल्मी स्टंट है क्योंकि लोग हिरोइन कुंवारी ही देखना चाहते हैं। विवाहित होने की ख़बर का फ़िल्म पर बुरा असर पड़ेगा। मां-बेटी ने इन ख़बरों को उसी रूप में लिया जैसा उन्हें बताया गया था। यह बात दीगर थी कि अनन्या दूसरों के मुंह से अपनी मां के बारे में इस प्रकार की प्रकाशित गासिप्स की चर्चा सुन कर रुंवासी हो जाती। उसके पास जो ज़वाब था वही देती, किन्तु उसका मन ख़राब तो हो ही जाता था। वह चाहती थी काश उसकी मां के बारे में वह सब प्रकाशित होता.. जो वह थी। उसके पापा की चर्चा होती, उसकी चर्चा होती। उनके घर के किस्से छपते तो वह अपनी मां की उपलब्धियों को इंज्वाय करती। ग़लत-सलत ख़बरों के बूते मां की चर्चा में बना रहना उसे एकदम रास नहीं आ रहा था। हद तो तब हो गयी जब एक हिट नायक अनिल कुमार के साथ अलका के प्रेम के किस्से प्रकाशित होने लगे और कयास लगाये जाने लगे थे कि ज़ल्द ही वे शादी करने जा रहे हैं। इस विषय पर एक टीवी चैनल ने तो कुछ क्लिपिंग्स भी दिखायी थी जिसमें उनकी क़रीबी के फुटेज थे। अनन्या उस दिन खूब रोयी थी। मोहित ने उसे उसे समझाया कि यह भी फ़िल्म की मार्केटिंग का हिस्सा है। अनन्या को समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी मां की उन उपलब्धियों का क्या करे जो उसके व्यक्तित्व की एक नकली छवि पेश करके हासिल हो रही थीं।
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अनन्या को मां से मिलने की बेकरारी बढ़ती गयी। वह अपनी नाराज़गी वाली बातें मां से कहना चाहती थी किन्तु फ़ोन पर वह संभव नहीं था क्योंकि अक्सर उसका फ़ोन नहीं लगता था। वह कहीं ज़रूरी मीटिंग में या शूटिंग में व्यस्त रहती थी। और उसका फ़ोन आता था तो उसे अपनी ही बातें बताने से फ़ुरसत नहीं रहती थी और बाप-बेटी भी उन्हें सुनने को उतने ही उत्सुक रहते थे।
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मोहित व अन्यन्या के बीच अपने परिवार के निकट भविष्य को लेकर जो बातें होतीं उनमें अलका महत्वपूर्ण हो उठी थी। अनन्या कहती- "अब तो मां फ़िल्मी दुनिया में क़ामयाब हो गयी है। वह आयेगी तो हम सब मुंबई चलेंगे। वहीं रहेंगे। आप भी तो अभिनय करते हैं आपको ज़रूर काम मिल जायेगा। यहां नौकरी छोड़ दीजिएगा।"
मोहित कहता-"मैं अपनी नौकरी क्यों छोड़ूगा! मैं यहीं रहूंगा। तेरी मां आती-जाती रहेगी। फिर तू भी तो रहेगी मेरे पास, मेरा मन लगा रहेगा।"
अनन्या-"नहीं मैं आपके पास यहां नहीं रहूंगी। मैं अपनी मां के पास रहूंगी। मां के पास ढेर सारे पैसे होंगे। बड़ी सी गाड़ी होगी। खूबसूरत बंगला होगा। देश-विदेश में घूमने जाऊंगी। अपने फ़ेवरेट एक्टर्स से मिलूंगी। बहुत मज़ा आयेगा..। आप तो हर समय डांटते रहते हैं। मां को आप कम डांटते थे? कहते थे... तुम्हारा उच्चारण ठीक नहीं है....। लिंग का ग़लत प्रयोग करती हो....। चलती हो तो ऐसे ऐसे क्यों करती हो...। नाटक में छोटा सा रोल क्या देते थे हर बात पर नुक्स निकालते थे। लो देखो, मेरी मां क्या है..? कितनी बड़ी ऐक्ट्रेस है। एक बार मुंबई गयी तो क़ामयाब होकर ही अब लौटेगी। मुझे आपके पास नहीं रहना है। मैं अपनी मां के पास रहूंगी। वह आयी और मैं गयी। रहिएगा अकेले।"
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अलका दो निजी सुरक्षाकर्मियों के साथ बिना बताये एकाएक घर लौटी थी। गाड़ी घर के बाहर ही खड़ी थी जिस पर वे उसके लौटने का इन्तज़ार कर रहे थे। अलका ने आते ही मोहित व अनन्या को बताया कि वह किसी तरह मुश्क़िल से आधे घंटे का समय निकाल कर घर आयी है। वह कोलकाता के पार्क होटल में ठहरी है और वहां उसकी नयी फ़िल्म की लांच की घोषणा होने वाली है। उसके आने की ख़बर मोहल्ले में आग की तरह फैल गयी और लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। कोई दरवाज़े से झांक रहा था तो कोई खिड़की से। कोई जबरन घर में घुसे जा रहा था। मुश्किल से घर का दरवाज़ा बंद किया गया। फिर भी कोई न कोई दरवाज़ा खटखटा देता था और अपने बच्चे लिए आटोग्राफ़ मांगने लग जाता था तो कोई कैमरामैन अपने साथ लेकर आया था और अलका के साथ फ़ोटो खिंचवाने पर आमादा था। बाप-बेटी दोनों को लगा कि यह अलका कोई और अलका है। पहनावे का ख़ूबसूरत सलीका और नये जीवन की समृद्धि ने उसका रूप-रंग बदल दिया था। हबीब्स के यहां उसने बाल स्ट्रेट कराये थे सो लम्बे और सजे-संवरे लग रहे थे। पहले वे अर्ध घुंघराले थे।
शायद बाप-बेटी कुछ देर उसके साथ इतमीनान से बातें करते यदि स्थिति सामान्य होती, किन्तु यह नहीं हो पाया। थोड़ी देर में मोहित के नाटक की टीम के कई सदस्य आ गये और अलका को बधाई देने, फोटो खिंचवाने और हाल-चाल पूछने में समय निकलता चला गया। इसी में बीच-बीच में अलका का फ़ोन बजता रहता और कुछ समय बातचीत में ही निकल गया। हर फ़ोन के बाद अलका कहती- "मुझे, अब लौटना होगा कई महत्वपूर्ण लोग होटल में मेरा इन्तज़ार कर रहे हैं।"
जब वह घर से निकलने को हुई तो उसने अनन्या को गले से लगाकर भींच लिया और कहा-"बेटा तुझे मुंबई चलना है न मेरे साथ?"
अनन्या रोते-रोते एकाएक खुश हो गयी-"हां, मां।"
-"तो कल तैयार रहना। कल सुबह की फ्लाइट से हम मुंबई जा रहे हैं। मैं अब निकल रही हूं। प्रेस कांफ्रेंस शुरू होने वाली है।"
उसने मोहित से कहा-"मैं कल सुबह पांच बजे घर आऊंगी। सुबह आठ बजे की फ्लाइट से मुंबई लौटना होगा।'
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दूसरे दिन सुबह वह नियत समय पर ही आयी। अनन्या ने अपना सामान पैक करवा लिया था। हालांकि वह देर तक असमंजस में रही थी कि क्या ले जाये क्या न ले जाये। फिर बहुत ही चुनिन्दा सामान उसने लिये। और इक्का-दुक्का कपड़े..वह जानती मुंबई में अब उसका पहनावा बदलेगा...मां से नये-नये कपड़े खरीदवायेगी..।
मोहित से अनन्या ने पूछा था-"आप नहीं चल रहे हैं मुंबई?'
मोहित ने समझाया-"बेटा। एकाएक तो मुझे छुट्टियां नहीं मिलेंगी। फिर तेरी मां से पूछना पड़ेगा। जब तेरी मां की शूटिंग नहीं चल रही होगी तब छुट्टियां लेकर मुंबई में आऊंगा ताकि तुम लोगों के साथ मौज-मस्ती कर सकूं.. अभी जाकर क्या करूंगा!"
अलका से मोहित की कुछ देर अकेले में बातें हुर्इं। अलका ने मोहित से पूछा-"अब आगे की ज़िन्दगी के बारे में क्या सोचा है, कैसे चलेगा सब कुछ....।"
मोहित-"सच पूछो तो मैं उलझन में हूं। तुम्हारी ज़िन्दगी बदल चुकी है। तुम्हारे सामने तय करने के लिए अनन्त मंज़िलें हैं और मैं एक चुका हुआ आदमी हूं। एकदम सामान्य सा। छोटे सपने, छोटी ख़वाइशें। यह ज़रूर है कि मैंने कभी सपने देखे थे कि तुम स्टार बनो। लेकिन यह जानता था कि सपने सच हो ही जायेंगे, और जब सच हो गये हैं तो जो कुछ हासिल है वह तुम्हारा है। मैं तुम्हारे साथ कैसे एडजेस्ट करूंगा.. यह मुझे सोचना है।"
अलका-"मैं भी कुछ अरसे से मानसिक रूप से परेशान हूं। मैं वह नहीं रह गयी हूं जो थी। तुम चाहे इसे मेरा पतन कहो या कुछ और लेकिन सच यही है कि हमारी दुनियाएं अलग हो चुकी हैं..आगे कोई ऐसी राह नहीं दिखती, जो हमें जोड़ती हो। मैंने शुरू से आपको अपने बराबर कभी नहीं पाया..उम्र के फासले के कारण एक दूरी हमेशा रही। आप से मैंने बहुत कुछ सीखा, बहुत कुछ जाना, आपके प्रति सम्मान बढ़ता गया लेकिन प्यार...प्यार तो.."
मोहित-"क्या अनिल कुमार वाली बात सच है?"
अलका-"सच हो तो भी आप जो कहेंगे वही होगा...आपका एहसान मुझे ग्लानि और अपराध- बोध से भर देता है...."
मोहित-"नहीं मैं जानता हूं। इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं। राह के अनुभव राही को बदलते हैं..अपने प्रति ईमानदारी से बढ़कर कोई ईमानदारी नहीं। दुनिया में सबको तरक्की करने के, अपने सपने पूरे करने के, अपने चाहे को पाने के अवसर नहीं मिलते.. जिन्हें मिलते हैं उन्हें अवश्य पूरे करने चाहिए..तुम्हारी दुनिया में मैं जी नहीं पाऊंगा। जीऊंगा भी तो कुंठित होकर.. यह मत भूलो कि मैं भी कलाकार हूं जिसे उचित अवसर नहीं मिला लेकिन हम अपनी विफलताओं के लिए कोई न कोई दर्शन गढ़ ही लेते हैं और वह दर्शन हमें जीने की शक्ति देता है। मैं अपनी दुनिया में ही खुश हूं।...... तुम्हारे नये जीवन की शुभकामनाएं..मैं तुम्हें इसलिए भी नहीं रोकना चाहता क्योंकि तुम रुकोगी भी तो पहले वाली नहीं रहोगी..वापसी दरअसल वापसी नहीं होती...हम जो जाते समय होते हैं लौटते समय नहीं रह जाते ..हम बदल जाते हैं यात्राएं या तो हमें सफलता देती हैं और हम नये आदमी हो जाते हैं या फिर विफल होकर लौटते हैं तो एक टूटे-हारे व्यक्ति होते हैं पहले वाले कदापि नहीं...डाइवोर्स का म्यूचुअल लेटर जब चाहोगी मिल जायेगा..।"
दोनों की आंखें नम थीं..।
-"अनिल कुमार भी कार में बैठे हैं क्या उनसे मिलेंगे?"
मोहित ने इनकार से सिर हिला दिया। अनन्या को लेकर अलका कार की ओर बढ़ी।
मोहित ने दोनों को विदा के लिए हाथ हिलाया. और दरवाज़ा बंद कर लिया।
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तीन-चार मिनट से कुछ अधिक ही बीत गये तो दरवाज़े पर कॉलबेल बजी। मोहित ने दरवाज़ा खोला..सामने अपने हल्के-फुल्के सामान के साथ अनन्या खड़ी थी। उसकी आंखों में आंसू थे..वह दौड़कर मोहित से लिपट गयी और सुबक-सुबक कर रोने लगी..उसने रुंधे गले से कहा-"मैं नये पापा के पास नहीं जाऊंगा। मैं आपके ही पास रहूंगी। और मैं मां के बिना भी रह लूंगी। आप साथ हैं न!"---

इस घटना को दो सप्ताह गुज़र गये। इस बीच अलका का कोई फ़ोन नहीं आया। न अनन्या के पास न मोहित के पास। अलबत्ता अनन्या का फ़िल्मी गासिप्स पत्रिकाओं से मोह नहीं गया था और ना ही फ़िल्मी ख़बरों से जुड़े टीवी चैनलों से। वह उन्हें खोये खोये ढंग से देखती पढ़ती और मां से जुड़ी खबरों की कतरने व तस्वीरें काटती रहती। पहले तो वह इन ख़बरों को सच मानती थी और फिर सिर्फ़ गॉसिप। लेकिन अब उसके लिए यह समझना मुश्क़िल हो गया था कि पता नहीं कौन सी ख़बर सही है और कौन सी कल्पित।
इन दिनों आम चर्चा थी फ़िल्म फेयर अवार्ड की। तमाम पत्रिकाएं और टीवी चैनलों पर एक ही नाम प्रमुखता से था वह अलका का। उसकी हाल ही में तीन-तीन फ़िल्में रिलीज हुई थीं और उन्होंने बाक्स आफिस पर कमाल कर दिया था। सफलता की नयी ऊंचाइयां छूने की उम्मीद की जा रही थी। ज्यादातर फ़िल्म आलोचकों का अनुमान था कि इस बार बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड अलका को ही मिलेगा। हालांकि वे किसी एक फ़िल्म में उसके अभिनय को लेकर उनमें एकमत नहीं था। कोई एक के अभिनय को सराहता था तो दूसरे दूसरे को और कोई तीसरी फ़िल्म में उसके अभिनय के कसीदे काढ़ने में लगा था।
इसी के साथ ही मीडिया में अलका की शादी के चर्चे भी आम थे। अलका ने कहा था कि वह फ़िल्म फेयर अवार्ड के बाद अपनी ज़िन्दगी के बारे में एक बड़ा खुलासा करने वाली है। मीडिया का अनुमान था कि वह शादी का मामला है और वह अनिल कुमार से शादी करने की घोषणा ही करने वाली है। कुछ टीवी चैनलों ने तो अनिल कुमार एवं अलका के करीबी के अलग-अलग अवसरों के फुटेज जुगाड़ कर रखे और उनकी फ़िल्मों के शाट्स को जोड़कर बाकायदा एक प्रेम कहानी का रूप देकर पेश करने में लगे थे और दावे कर रहे थे कि फिल्म फेयर अवाड्र्स की घोषणा के साथ ही दो सितारों के मिलन होने जा रहा है।
अनिल कुमार से जब उनकी शादी के बारे में पूछा जाता तो उसका जवाब होता .'.इन्तजार कीजिए। यदि ऐसा कुछ हुआ तो सामने आयेगा। फ़िलहाल नो कामेंट।'
अलका का एक ही जवाब होता-'अवाड्र्स फंक्शन के बाद।'
हाल की जो तीन फ़िल्में रिलीज़ हुई थी उनमें से दो में अलका के साथ अनिल कुमार ने ही बतौर हीरो अभिनय किया था।
मीडिया की इन ख़बरों से मोहित उदास रहने लगा था और अनन्या रुंआसी। मोहित के पास अनन्या को दिलासा देने के लिए शब्द नहीं थे। पास-पड़ोस के लोगों से वे निग़ाह नहीं मिला पा रहे थे और दूर दराज़े के दोस्तों के फ़ोन आते उन्हें दिलासा देने के लिए और यह पूछने के लिए कि यह अचानक कैसे हो गया?
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आखिर वह घड़ी भी आ गयी जब फ़िल्म फेयर अवाड्र्स की घोषणा हुई। अलका की तीन-तीन फिल्मों को नामांकन मिला था जो उसके लिए विशेष गौरव का विषय था। और बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड तो उसे मिला ही। अवार्ड फंक्शन के ख़त्म होते ही मीडिया ने उसे घेर लिया। सबका सवाल उसकी नयी घोषणा के सम्बंध में था। अलका के नये खुलासों से मीडिया सकते में था और उसके कयास धरे-के धरे रह गये थे। अलका ने बताया कि अनिल कुमार से शादी का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि वह आलरेडी शादीशुदा है। और हां उसकी एक प्यारी सी बच्ची भी है। और उसे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता की उसके वैवाहिक जीवन के बारे में जानकर उसके फ़िल्मी करियर पर क्या असर पड़ेगा क्योंकि उसे जो प्रूव करना था, वह कर चुकी है। उसके इस बात का फख्र है कि उसके पति उससे अच्छे अभिनेता हैं और उसके अभिनय गुरु भी। वह फिलहाल कोलकाता के लिए फ्लाइट पकड़ने जा रही है अपनी बच्ची और पति से मिलने।
टीवी पर यह सब अनन्या और मोहित देख रहे थे। ये टीवी के ऐसे फुटेज थे जिस पर अनन्या को यक़ीन नहीं हो रहा था लेकिन उसे यह भरोसा था कि यह गासिप नहीं है। उसकी मां सचमुच आ रही है..!!
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