पुस्तकों का प्रकाशन विवरण
- लेखकों के पत्र
- कहानी
- तीसरी बीवी
- कला बाज़ार
- दी हुई नींद
- वह हथेली
- अनचाहे दरवाज़े पर
- आवारा हवाओं के ख़िलाफ चुपचाप
- सरापता हूं
- भग्न नीड़ के आर पार
- एक अदहन हमारे अन्दर
- खुशी ठहरती है कितनी देर
- मनुष्य और मत्स्यकन्या
- बीसवीं सदी की आख़िरी दहाई
- कुछ दुःख, कुछ चुप्पियां
- टिप टिप बरसा पानी
- मुझे विपुला नहीं बनना
- ज़रा सा नास्टेल्जिया
- कालजयी कहानियांः ममता कालिया
- कालजयी कहानियांः मृदुला गर्ग
3/15/2011
अभिज्ञात के नाम केदारनाथ अग्रवाल के पत्र
-एक-
केदारनाथ अग्रवाल ऐडवोकेट
सिविल लाइन्स
बांदा (उ.प्र.)-PIN 210001
D. 28.12.89
बंधुवर,
आपकी-संदर्भ चीन-कविता8/11 को मुझे मिल गयी थी। पाकर खुश हुआ कि अच्छी रचना भेज कर आपने मुझे इतनी दूर से याद किया। यह मैं अपना सौभाग्य समझता हूं। देर से पत्र लिख रहा हूं क्योंकि शरीर से स्वस्थ नहीं था। अब भी ठीक नहीं हूं। फिर भी अब अधिक समय तक निरुत्तर नहीं रखा जा सकता इसलिए विवश होकर, क्षमा याचना करते हुए, यह पत्र लिखने बैठ ही गया।
आशा है आप स्वस्थ और प्रसन्न होंगे। मेरी मंगलकामनाएं नव वर्ष के लिए स्वीकार करें।
सस्नेह आपका
केदारनाथ अग्रवाल
-दो-
बांदा-210001
22.2.90
प्रिय 'अभिज्ञात' जी
आपका काव्य-संकलन-एक अदहन हमारे अन्दर- की प्रति डाक से मिली है। पढ़ गया। कुछ कविताएं अच्छी लगीं। आप शोध कार्य में लगे हैं-यह अन्यंत हर्ष की बात है। श्री केदारनाथ सिंह मेरे पुराने परिचित और मित्र हैं। अवश्य अपने शोधकार्य में सफल हों।
मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें।
शरीर से शिथिल हूं। बहुत श्रम नहीं कर सकता। दृष्टि भी क्षीण है।
आशा है कि आप स्वस्थ और प्रसन्न होंगे।
पता किताब से देखकर पत्र भेज रहा हूं। मिले तो पाने की सूचना दें।
सस्नेह
केदारनाथ अग्रवाल
-तीन-
बांदा/210001
6.11.90
प्रियवर,
16.10.90 को पोस्टकार्ड मिला। कविता पढ़कर मनोल्लास हुआ। आभार व्यक्त करता हूं।
इधर तबियत ख़राब चल रही है इससे विलम्ब से उत्तर दे रहा हूं। अब ठीक हूं।
मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें।
सस्नेह
केदानाथ अग्रवाल
-चार-
प्रेषक
केदारनाथ अग्रवाल, ऐडवोकेट,
सिविल लाइन्स,
बांदा/10.12.90/PIN 210001
प्रिय अभिज्ञात
-27/11 का पोस्टकार्ड मिला।
-मैं इधर शरीर से अधिक शिथिल चल रहा हूं। बहुत कठिनाई से पत्र लिख रहा हूं।
-मेरे प्रकाशक श्री शिवकुमार सहाय, परिमल प्रकाशन, ए.आई.जी. आवास योजना, अल्लापुर, इलाहाबाद हैं। वह इधर 'पुस्तक मेला' से आठ हजार का घाटा उठा कतर घर लौटे हैं। मैं नहीं समझता कि यह उचित होगा कि उनको लिखूं कि वह आपकोम मेरा नया काव्य संग्रह-अनहारी हरियाली- भेजें। बुरा न मानें आप। मौका जब भी आयेगा उनसे भेजने को लिखूंगा।
-आशा है कि सानंद होंगे।
आपका
केदारनाथ अग्रवाल
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