विभूति नारायण राय महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। वे 1975 बैच के यू.पी.कैडर के आई.पी.एस. अधिकारी रहे हैं। पुलिस के कामकाज के तौर तरीकों व नजरिये के बारे में वे अपनी विशिष्ट राय के कारण अलग से जाने जाते हैं और एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर देखे जाते हैं। साम्प्रदायिकता पर शोध व चिन्तन-मनन-लेखन के लिए भी वे जाने जाते हैं तथा साम्प्रदायिक हिंसा के कारकों पर वे लगातार पैनी नजर रखते हैं और उसके खिलाफ बेबाक राय ही व्यक्त नहीं करते बल्कि आवश्यकता पडऩे पर वे मुकदमा करने से भी पीछे नहीं हटते। विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार तथा पुलिस मैडल से सम्मानित विभूति जी एक संवेदनशील पुलिस अधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित रहे और एक कथाकार के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की है। उनका उपन्यास 'शहर में कफ्र्यू' हिंदी के अलावा अंग्रेजी, असमिया, पंजाबी, उर्दू, बांग्ला, मराठी आदि में भी अनूदित हो चुका है। उनकी अन्य कृतियां हैं, उपन्यास-'घर', 'किस्सा लोकतंत्', 'तबादला', 'प्रेम की भूत कथा'। व्यंग्य संग्रह -'एक छात्र नेता का रोजनामचा', लेख संग्रह -'रणभूमि में भाषा', संपादन -'समकालीन हिंदी कहानिया'। उन्होंने साहित्यिक पत्रिका 'वर्तमान साहित्य' का लगभग पंद्रह वर्षों तक संपादन किया। उन्हें इंदु शर्मा अंतरराष्ट्रीय कथा सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का सम्मान, सफदर हाशमी सम्मान प्राप्त है। हाल ही में एक कार्यक्रम में भाग लेने वे कोलकाता आये थे, प्रस्तुत है इस अवसर पर उनसे विविध विषयों पर डॉ. अभिज्ञात से की गयी बातचीत के कुछ अंश:- प्रश्न: हाल के दिनों में भोजपुरी बोली को भाषा बनाने की मांग ने संसद में फिर जोर पकड़ा और अब हालात ऐसे नजर आ रहे हैं कि उसे भाषा की मान्यता मिल जायेगी। ऐसे में कुछ लोगों की राय यह है कि बोलियों के भाषा बन जाने से हिन्दी की स्थिति कमजोर होगी। आपकी क्या मान्यता है?
उत्तर: बोलियों के विकास या उन्हें भाषा की मान्यता मिलने से हिन्दी के कमजोर होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। भोजपुरी ही क्यों, ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, मगही, राजस्थान की तीन-चार बोलियां आदि हिन्दी की खाद हैं। इनसे हिन्दी को शक्ति मिलती है। हिन्दी भी तो सौ-सवा सौ साल पहले तक खड़ी बोली ही थी। वह परिमार्जित और मानकीकृत रूप में हमारे सामने है। गांधी जी ने भी हिन्दी का प्रचार किया था। आज हम जिस आधुनिक हिन्दी की बात करते हैं तो उसका नाम लेते ही पहला ध्यान हमारा खड़ी बोली पर ही जाता है। भोजपुरी के भाषा बन जाने से हिन्दी की स्थिति और मजबूत ही होगी। यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दी को नुकसान पहुंचाकर देश की कोई भी भाषा उन्नत नहीं होगी। हिन्दी तो भाषाओं का राष्ट्रमंडल है, कॉमनवेल्थ है। भोजपुरी को भाषा की मान्यता मिलने के बाद उसका और विकास होगा किन्तु यह विकास इस तरह का होना चाहिए कि उससे हिन्दी को हानि न पहुंचे। कहीं ऐसा न हो कि किसी एक खम्भे को मजबूत करने के लिए पूरी इमारत को खतरे में डाल दिया जाये। हिन्दी को मजबूत करके ही भोजपुरी तथा उसकी अन्य बोलियां मजबूत होंगी।
- प्रश्न: क्या हिन्दी की तरह ही बाकी भाषाओं के विकास के लिए स्वतंत्र विश्वविद्यालय नहीं होना चाहिए?
उत्तर: बिल्कुल होना चाहिए। सभी भाषाओं का अलग ïिवश्वविद्यालय बने, इससे किसी को इनकार नहीं होना चाहिए। ïिवभिन्न भाषाओं का विश्वविद्यालय बनने से उन भाषाओं का संरक्षण और विकास होगा। उनका पठन-पाठन होना चाहिए। उसके साहित्य तथा लिपि का दस्तावेजीकरण और प्रचार-प्रसार होना चाहिए। इसमें सबसे बड़ी चुनौती होती है पाठ्यक्रम तैयार करने की, यह किया जाना चाहिए। कई भाषाएं लुप्त हो रही हैं, उन्हें बचाने की आवश्यकता है। ज्ञान के विभिन्न अनुशासनों का अध्ययन सभी भाषाओं में होना चाहिए और उन भाषाओं के लोगों के अनुभवों को उनका भाषा में दर्ज किया जाना चाहिए।
- प्रश्न: 'प्रेम की भूतकथा' उपन्यास के बाद आप अब किस कृति की तैयारी में जुटे हैं?
उत्तर: वह नान फिक्शन है 'हाशिमपुरा 22 मई'। मेरठ के हाशिमपुरा मोहल्ले से 1987 में पीएसी के जवानों ने 30-40 मुसलमानों को गाजियाबाद लाकर मार डाला। पुलिस हिरासत में हत्या का हाशिमपुरा कांड जैसा जघन्य उदाहरण मुश्किल है। अल्पसंख्यकों के बारे में पुलिस के नजरिये को उजागर करने वाली ऐसी दिल दहला देने वाली घटना कम होगी। 1987 में हुए मेरठ के हाशिमपुरा कांड के समय मैं गाजियाबाद में तैनात था इसलिए इस घटना को नजदीक से देखने का अवसर मिला। मैंने शोधकर्ता के रूप में भारतीय पुलिस पर अपने अध्ययन कॉम्बैटिंग कम्युनल कांफ्लिक्ट में इस घटना का विश्लेषण भी किया है। पीएसी ने मेरठ के हाशिमपुरा में तलाशी के दौरान गिरफ्तार लोगों को जहां मारा था, वह जगह गाजियाबाद में पड़ती थी, इसलिए मैंने इनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किये थे। मैंने तथ्यों की पड़ताल की और उसके बाद भी मैं लगातार उस घटना के विविध पहलुओं को लेकर मंथन करता रहा और वह एक पुस्तक की शक्ल में प्रकाशित होगी। हालांकि अभी तक कोर्ट का फैसला नहीं आया है इसलिए उस पुस्तक के प्रकाशन में विलम्ब हुआ है किन्तु आशा है चार-छह महीने में वह आ जायेगा और किताब भी आयेगी।
- प्रश्न: गुजरात के दंगों पर कुछ नहीं लिखा?
उत्तर: मैंने 2001 के दंगे के बाद भारतीय पुलिस की भूमिका पर Letter addressed to all IPS officers of the country during Gujrat riots लिखा था तथा यह कई अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ था। हाशिमपुरा कांड के पहले भी मैंने सांप्रदायिक हिंसा पर अध्ययन व चिन्तन किया है। यह मेरी खास दिलचस्पी का केन्द्र रहा है। इसलिए इससे जुड़ी घटनाएं मुझे उद्व्ेलित करती हैं।
- प्रश्न: आपके गृह जिले आजमगढ़ के बारे में तो कहा जाता है कि वह आतंकवादियों की नर्सरी है। इस सम्बंध में क्या कहेंगे?
उत्तर: आजमगढ़ के सरायमीर इलाके और संजरपुर गांव को आतंकवाद की नर्सरी कहकर लांछित किया जाता है। दरअसल आजमगढ़ के बारे में जब भी बातें होती हैं अतिरेक में होती हैं। आरोप लगाने वाले और उसका विरोध करने वाले दोनों ही पक्ष अतिरेक पर हैं। कुछ लोगों का दावा है कि आजमगढ़ का हर मुसलमान आतंकवादी है। अमूमन आजमगढ़ के लोग मुंबई में शूटर का काम करते हैं और विदेश में वे आईएसआई के एजेंट हैं, जबकि दूसरा पक्ष कहता है कि कोई मुसलमान आतंकी मामलों में शरीक नहीं हो सकता। इन ठस दलीलों और अतिरेक के कारण तनाव की स्थिति है। जबकि यह संभव है कि कुछ युवक आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं और शूटर भी हो सकते हैं या आईएसआई के हाथों की कठपुतलियां भी बन सकते हैं। किन्तु यह व्यक्ति का मामला है इसे सरलीकृत करके पूरे एक समुदाय पर थोपना ठीक नहीं है। आजमगढ़ के भव्य इतिहास में शिवली कालेज का नाम महत्वपूर्ण है। शायरी और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत से महत्वपूर्ण काम यहां के लोग कर रहे हैं। राजनीति और नौकरशाही में जिले के कई महत्वपूर्ण लोगों का खासा योगदान है।
- प्रश्न: आप पुलिस सेवा से शिक्षा के क्षेत्र में आये हैं क्या लगभग विपरीत कार्यशैली वाले कामकाज में तालमेल बिठा पाते हैं?
उत्तर: मैं पुलिस सेवा के साथ-साथ भाषा और साहित्य की दुनिया से भी पिछले 30-40 सालों से जुड़ा रहा हूं इसलिए जब पुलिस की सेवा से शैक्षणिक जगत में आया तो यह नयी दुनिया एकदम अपरिचित नहीं थी। यह सही है कि दोनों का कामकाज के तौर तरीकों में काफी फर्क है लेकिन एक बार इसे समझ लिया तो फिर कोई दिक्कत नहीं हुई। पुलिस सेवा में अनुशासन का अभ्यास था और काम को फोकस तरीके से करने का भी। मैंने कामकाज के उस तरीके को शैक्षणिक जगत में अपनाया। मेरा मानना है कि अकादमिक जगत में भी अनुशासन अत्यंत आवश्यक है और मैं चाहता हूं कि वह लागू हो। कोई भी अकादमिक दुनिया अराजकता के बीच विकास नहीं कर सकती। अध्यापकों और छात्रों में अनुशासन होना चाहिए। यह अनुशासन आत्मानुशासन के रूप में होना चाहिए, थोपा हुआ नहीं। इसके लिए अनुकूल वातावरण की आवश्यकता होती है और मैंने उसके लिए अपने विश्वविद्यालय में प्रयास किया है।
- प्रश्न: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की मौजूदा स्थिति के बारे में क्या कहना चाहेंगे। क्या उसके कामकाज की स्थिति संतोषजनक है?
उत्तर: विश्वविद्यालय की स्थापना के 15 वर्ष पूरे हो चुके हैं, जिनमें से शुरू के पांच वर्ष बेकार चले गये। हम दिल्ली में बैठे रहे। अब वर्धा में विश्वविद्यालय का आवासीय परिसर बन चुका है। छात्रावास बन चुका है। पठन-पाठन की कक्षाएं चल रही हैं। यह विश्वविद्यालय अब अपने पैरों पर खड़ा हो चुका है और उड़ान भरने को तैयार है। पाठ्य सामग्री तैयार है। खुशी इस बात की भी है कि मेरी जानकारी में यह पहला विश्वविद्यालय है जिसमें हिन्दी में एमए केसाथ-साथ किसी एक अन्य भारतीय या विदेशी भाषा का डिप्लोमा लेना अनिवार्य होगा। हमने इस सत्र से यह लागू किया है। साथ ही साथ कम्प्यूटर की शिक्षा भी अनिवार्य बनायी गयी है क्योंकि आज के वैश्विक होती दुनिया में कम्प्यूटर भाषा को जाने बगैर ज्ञान की कल्पना नहीं की जा सकती। हिन्दी अकेले आगे नहीं बढ़ रही है वह दूसरी भाषाओं के साथ सहयोगिता करती हुई बढ़ रही है।
- प्रश्न: आपकी भावी योजनाएं क्या हैं और उनसे जुड़ी सुविधाओं असुविधाओं के बारे में बतायें।
उत्तर: हमारी भावी योजनाएं सही अर्थों में 12 वीं पंचवर्षीय योजना पर टिकी हैं। हमने नये विषयों और विभागों की परिकल्पना की है। नये अनुशासनों के अध्ययन की भी तैयारी है। इसमें अध्यापक और छात्र बढ़ेंगे। इसके लिए नये भवनों की आवश्यकता होगी। छात्रों की सही अर्थों में सभी अकादमिक आवश्यकताओं की पूॢत हो, हमने यही सोचा है। इसमें सरकार और समाज दोनों ही पक्षों के सहयोग की आवश्यकता होगी।
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