कोलकाताः अभिज्ञात ने कविता में गद्य का बेहतरीन प्रयोग करते हुए कई विलक्षण कविताएं लिखी हैं। एक अच्छे कवि के लिए अच्छा गद्यकार होना ज़रूरी है और यह अतिरिक्त बात उनके काव्य-व्यक्तित्व को अधिक अर्थवान बनाती है। वे कविता में क्रीड़ा-कौतुक करते हैं और भाषा व भावों के साथ खेलते हुए एक ऐसी रचनात्मकता अर्जित करते हैं, जो उनका अपना क्रिएशन है। यह कार्य हिन्दी कविता में नागार्जुन ही कर सकते थे। यह कहना है प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह का। वे 22 नवम्बर 2011, मंगलवार की शाम डॉ.अभिज्ञात के ‘कविता संग्रह खुशी ठहरती है कितनी देर’ के लोकार्पण समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की ओर से उसके कोलकाता केन्द्र में किया गया था। कवि केदारनाथ सिंह एवं बंगला के प्रख्यात कथाकार-कवि नवारुण भट्टाचार्य ने अभिज्ञात के काव्य संग्रह का लोकार्पण किया। केदार जी ने कहा कि यह विस्मयकारी लगा कि अभिज्ञात टूटाने की आवाज़ों का स्वागत करते कवि हैं। गा़लिब की तरह उन्हें भी टूटने की आवाज़ें अच्छी लगती हैं। अपनी कविता ‘तोड़ने की शक्ति’ में कहते हैं-‘जाने क्यों अच्छी लगती है मुझे टूटने की आवाज़ें’। इस भाव का जन्म काफी पहले कलकत्ता में मिर्जा ग़ालिब के यहां उस समय हुआ, वे जब कलकत्ता आये थे, शायद उन्होंने तभी ये शेर कहा होगा-‘ न गुल-ए-नग़्मा हूँ, न परदा-ए-साज़/मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़।‘ ग़ालिब कलकत्ता में ढाई साल रहे। यहां उन्हें नयी चेतना मिली।
वे अपने परिवेश के प्रति बेहद चौकन्ने हैं। यह बात उनकी दंगे पर लिखी कविता में विशेष तौर पर उभर कर आयी है। दंगे पर उन्होंने एक अच्छी कविता लिखी है ‘दंगे के बाद’। मेरठ में हुए दंगे पर नागार्जुन ने भी ‘तेरी खोपड़ी के अन्दर’ कविता लिखी थी। दोनों की कविताओं में साम्य यह है कि ये इस क्रिएटिव तरीके से लिखी गयी हैं कि वे दंगे पर सामान्यीकृत प्रतिक्रया नहीं हैं। सामान्य को कविता में किस प्रकार विशिष्ट बनाया जाता है वह काबिलियत अभिज्ञात ने अर्जित कर ली है। अभिज्ञात की एक और बात जो मुझे आकृष्ट करती है वह यह कि वे साहित्य की अतिरिक्त गंभीरता को तोड़ते हैं। कविताओं में कई जगह हास्य या व्यंग्य करते हैं, जिनमें क्रिड़ा भाव अनेक स्थानों पर मिलता है और वे बहुत सहज ढंग से बड़ीं बात कह जाते हैं। उसकी एक छोटी सी कविता ‘भगवान जी से’ का उल्लेख करना चाहता हूं। इसमें कवि ने भगवान से समान स्तर पर बात की है। भगवान का कोई आतंक नहीं है। ऐसा सिर्फ़ नागार्जुन कर सकते थे। एक वैराग्यपन की भाषा है अभिज्ञात की इस कविता में, यथा- ‘प्रभु! तुम्हारी छोटी सी मूर्ति के पास/ठीक नीचे रखे हैं झाड़ू और जूते चप्पल/उन्हें तुम इग्नोर करना वह तुम्हारे लिए नहीं हैं/
तुमसे अपील है कि तुम अपने काम से काम रखो /और वह जो फूल तुम्हारी मूर्ति के पास रखा है/और जली हैं अगरबत्तियां, जला है एक घी का दिया/बस वही तुम्हारे हैं, उतना ही है तुम्हारा तामझाम, माल असबाब/तुम वहीं तक सीमित रहो, और उतने में ही मगन
यह छोटा सा घर है मेरा, उसी में तुम्हें भी ज़गह दी है यही क्या कम है?’
इस संग्रह की बहुत अच्छी कविताओं में एक है ‘हावड़ा ब्रिज’। यह कविता कोलकातावासियों को खास तौर पर पढ़नी चाहिए। मैंने भी पुल पर कविता लिखी है। मेरी जानकारी में हावड़ा ब्रिज पर हिन्दी में ऐसी कविता नहीं लिखी गयी। उनकी कविताओं में हिन्दी से इतर भाषा के शब्द भी आये हैं, जो अच्छी बात है। शुद्धता हमेशा भाषा की शत्रु होती है। इस अवसर पर नवारुण भट्टाचार्य ने कहा कि जिस कवि की पुस्तक का लोकार्पण इस महाद्वीप के महान कवि केदारनाथ सिंह कर रहे हों, उसकी कविता पढ़ रहे हों, उन पर बात कर रहे हों, उसकी श्रेष्ठता अपने आप प्रमाणित हो जाती है। इसके पूर्व विश्वविद्यालय के कोलकाता केन्द्र के प्रभारी डॉ.कृपाशंकर चौबे ने कहा कि कोलकाता के हिन्दी जगत में यह अपूर्व घटना है, जब एक युवा कवि के कविता संग्रह का लोकार्पण हिन्दी व बंगला के दो शीर्ष कवि एक साथ कर रहे हैं।
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए सुपरिचित आलोचक डॉ.शंभुनाथ ने कहा कि यह एक कसा हुआ काव्य-संग्रह है। इस संवेदनहीन होते समय में संवेदना की बैटरी को चार्ज करने वाले कवि केदार जी और अभिज्ञात हैं। अभिज्ञात की कविताओं में स्थानीयता अभी बची हुई है। वे स्थान को इतिहास व स्मृति के हवाले नहीं करते। ‘माझी का पुल’ और ‘हावड़ा ब्रिज’ जैसी कविताएं स्थान को बचाये हुए हैं। ये स्थान लोगों की स्मृतियों में झूलते रहते हैं। नागार्जुन की कविता ‘पछाड़ दिया मेरे आस्तिक’ की तरह अभिज्ञात भी कविता लिखते हैं ‘सूर्य की सिंचाई’। दोनों कविताएं अपने-अपने समय की और अपनी तरह की अद्भुत कविताएं हैं। कार्यक्रम का संचालन कर रही कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.राजश्री शुक्ला ने कहा कि उनकी कविताओं में सामान्य अनुभवों का विशेष आस्वाद है। एक सामान्य अनुभव का अंश हमारे सामने आता है और अपने आपको काटकर विशेष हो जाता है। ये कविताएं स्पंदित करती हैं। इन कविताओं में स्व का विस्तार है। इस कार्यक्रम में अभिज्ञात ने ‘पैसे फेंको’ और ‘वापसी’ कविताओं का पाठ किया।
प्रस्तुति-जीवन सिंह
11/2 केदारनाथ दास लेन, दमदम जंक्शन, पोस्ट-घूघूडांगा, कोलकाता-700030,मोबाइल-9433352976
1 टिप्पणी:
बधाई अभिज्ञात जी...मुझे खुशी है कि इतने संवेदनशील कवि को व्यक्तिगत तौर पर भी जानता हूं...
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