5/08/2013

मैं सूर्य देखना चाहता हूं

साभारः पाखी, मई 2013
कहानी 
-अभिज्ञात
मैं सूर्य देखना चाहता हूं!
पहले उसकी ज़िन्दगी में ऐसा नहीं था। सूर्य पूरे इतमीनान से सदियों से जी रहा था। कोई बड़ी हलचल उसकी ज़िन्दगी में नहीं मची थी। उसका जल-जीवन तमाम तिलिस्मों से भरा हुआ था, लेकिन उसमें कोई विस्मय नहीं था। एक जानी-पहचानी सी दुनिया थी। एक खास तरह का नीलापन उसके चारों तरफ़ पसरा पड़ा था। यह तो मुश्किल से चार-पांच सौ साल के एक कछुए ने उसकी ज़िन्दगी को बदल कर रख दिया था। कछुए ने पृथ्वी से लौटकर हाल की नयी खोजों के बारे में उसे बताया तब जाकर उसे अपनी पुरानी दुनिया का पता चला। कछुए ने नयी जानकारी दी कि दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत शृंखला हिमालय का निर्माण महाद्वीपों की टक्कर से हुआ था। महाद्वीपों की इसी टक्कर ने भारत को धरती के ‘मैंटल’ में 200 किलोमीटर गहराई में धकेल दिया था। करीब नौ करोड़ साल पहले जब भारत और एशिया का टकराव हुआ तो भारतीय टेक्टोनिक प्लेट का कांटिनेंटल क्रस्ट एशियाई प्लेट के अंदर चला गया। कांटिनेंटल क्रस्ट के इतनी गहराई तक जाने की घटना को पहले कभी देखा या सुना नहीं गया था।
वह कछुआ आज की पृथ्वी से भटकते हुए उनकी दुनिया में अकस्मात चला आया था। उसकी बातों ने सूर्य को बेचैन कर दिया था। वह उस पृथ्वी पर पुनः जाना चाहता था जहां नौ करोड़ वर्ष पूर्व वह रहा करता था। यह तो प्रकृति की हलचल थी जिसमें एकाएक ऐसा परिवर्तन आया कि भूखंड का वह हिस्सा जहां वह रहा करता था धरती में समा गया। उसे जब होश आया तो उसने अपने को पृथ्वी के लाखों मील नीचे समुद्र के एक तल में पाया। अपने साथ वहां रह रहे जलजंतुओं व वनस्पतियों से उसने जाना कि सैकड़ों साल की मूर्छना के बाद उसे होश आया था और वह एक ऐसी दुनिया में है जहां परिवर्तन बहुत कम घटित होते हैं। लगभग एक सा जीवन। चारों तरफ़ जल ही जल। हल्के नीले रंग का जल। यह जल पृथ्वी की उन हवाओं जैसा है जिनके होने से आवागमन में बाधा नहीं पहुंचती। वह बस वस्तुओं के चारों ओर के स्पेस को भरती हैं। यह खास तरह का जल है जिसके स्पर्श मात्र से कष्ट की अनुभूति नहीं होती। जख्म सूख जाते हैं और उम्र जहां की तहां ठहर जाती है और तो और मृत्यु जैसी घटना घटित नहीं होती जो पृथ्वी पर घटती है। इसलिए वह करोड़ों वर्षों से वहीं पड़ा है। यहां उसके अलावा अन्य कोई मनुष्य भी नहीं है। दरअसल यह मनुष्यों की दुनिया है भी नहीं। वह तो ग़लती से यहां चला आया। और उसे यहां से बाहर निकलने का मार्ग हाल ही में पता चला।
हालांकि उसे पृथ्वी के बारे में कुछ भी याद नहीं था। पृथ्वी के भूखंड की जल-समाधि के बारे में उसने दूसरों से जाना था। पिछले जनम की कोई याद उसके जहन में नहीं थी। उसे बताया गया कि इस दुनिया की बड़ी विशेषता यही है कि यहां आकर कोई अपनी पिछली ज़िन्दगी को याद नहीं कर सकता। यह इस जल के कारण है, जो स्मृतियों को रोकता है। इस जल-लोक से बाहर निकलते ही सारी स्मृतियां जस की तस हो जायेंगी लेकिन इस जल-लोक की स्मृति खो जायेगी।
इसका अपवाद केवल कछुआ था, जिस पर जल-लोक के नियमों का प्रभाव नहीं पड़ता था। प्रकृति से उसे जो विशेष शक्तियां मिली हुई थीं उनमें स्मृतियों का वरदान भी था।
और यह कछुआ ही था जो उसकी परेशानियों का कारण बन गया था और उसे खुशी देने वाला भी।
-----
कछुए ने उसे बताया कि तुम मनुष्य हो और मनुष्य की एक विशाल बिरादरी है पृथ्वी-लोक पर। मनुष्य अकेले नहीं रहता। वह समूह में रहने वाला प्राणी है और उसे समूह में ही रहना चाहिए। वह मनुष्य ही है जो एक दूसरे से बहुत अधिक प्यार करता है। मनुष्य दूसरे प्राणियों से भी बहुत प्यार करता है। वह दूसरों के दु:ख में दु:खी और दूसरों की खुशी में खुश होता है।  मनुष्य को ऐसी भावनाएं मिली हुई हैं जो दूसरे प्राणियों को नहीं मिलीं। दूसरों को समझने की उसमें अद्भुत क्षमता होती है। उसके प्रेम का दायरा अत्यंत व्यापक होता है जिसमें चांद, तारे, सूर्य, वनस्पति, पशु-पक्षी सब आते हैं। और स्त्री के बारे में जानकर तो वह बेचैन ही हो उठा। क्या सचमुच वह सौन्दर्य और कोमलता का खजाना होती है। क्या सचमुच पुरुष के जीवन की सार्थकता स्त्री का प्यार पाने में है, जिससे वह वंचित है।
मनुष्य केवल अपने बारे में ही नहीं सोचता। दूसरों के होने में उसका होना है। वह जन्म लेता है। बच्चे से बड़ा होता है, युवा होता है, वृद्ध होता है और वह दुनिया जिसे वह सबसे ज्यादा चाहता है; जिसके निर्माण में लगा रहता है, उसे छोड़कर मर जाता है। एकदम स्वाभाविक तौर पर। सबसे बड़ी बात है कि मनुष्य सपने देखता है। मनुष्यों के बीच कहानियां भी होती हैं।

सपने और कहानियां इनके बारे में जानकर सूर्य को सबसे अधिक हैरत हुई। वह सोच भी नहीं सकता था। इन दोनों में अनन्त दुनिया की बातें होती हैं। सपने और कहानियां मनुष्य के बीच ऐसी चीजें हैं जो दूसरे प्राणियों से उसे अलग करती हैं। एक ही दुनिया में कई दुनिया एक ही जिन्दगी में कई जिन्दगियां गुथी हुईं। होने और न होने की बाधा इनमें कतई नहीं होती। कोई बंधन नहीं। इन दोनों के बूते आदमी एक ही जिन्दगी में कितनी ज़िन्दगियों को देख सकता है। एक ही दुनिया में कितनी ही दुनिया का आनंद।
सूर्य की इच्छा जगी। वह सपने देखेगा। सूर्य को कहानियां सुनने की ललक जगी। एकदम होने जैसी बातें तो कभी नहीं हुईं। जो सच नहीं होकर भी होती हैं। कई बार सच से ताक़तवर,  सच से अधिक प्रभावी;  सच को दिशा देने वाली।
और सूर्य को सूर्य के बारे में जानकर और भी हैरत हुई। एक ऐसी चीज़, जिसे देखकर फूल खिलते हैं, जिसके बिना दुनिया में तमाम चीज़ें हों तो भी दिखायी न दें। जिसके बिना दुनिया का सारा सौन्दर्य व्यर्थ। रोशनी का जनक सूर्य। जो स्वयं उसका भी नाम है। उसे लगा वह सूर्य देखना चाहता है। और सूर्य को देखने में ही उसके होने की सार्थकता है।
सूर्य को लगा यह सुरक्षित जीवन किसी काम का नहीं। जहां वह सूर्य को नहीं देख सकता। जहां वह खुली हवा में सांस नहीं ले सकता। जहां वह किसी स्त्री से प्रेम नहीं कर सकता। जहां वह सपने नहीं देख सकता। जहां कहानियां नहीं हैं।
उसे सूर्य चाहिए। प्रेम चाहिए। कहानियां चाहिए। सपने चाहिए।
उसके आकर्षण का केन्द्र यही बन गये थे और वह कछुए से इन्हीं सबके बारे में जानना चाहता था। उन्हीं के बारे में बातें करता।
धीरे-धीरे उसके अन्दर एक कल्पना का संसार बनने लगा, जिसमें एक पृथ्वी थी। एक सूर्य था जिसकी वह आराधना करता। एक स्त्री थी जिससे वह प्रेम करता। एक बुढ़िया नानी, जो कहानियां सुनाती थी और असंख्य सपने देखने की चाहत थी।
-----
और जल-लोक में यह बात फैल गयी। जीव-जंतुओं, वनस्पतियों, चट्टानों सबने कहा यह सब मत सोचो। यह गलत दिशा है। तुम खुशकिस्मत हो तकलीफ़ों से बचकर इस दुनिया में आ गिरे थे। यह तुम्हारे लिए वरदान साबित हुआ। करोड़ों साल से ज़िन्दा हो वरना कब के मर-खप गये होते। जिस दुनिया की बातें करते हो वहां बहुत तकलीफ़ें हैं। वृद्धावस्था की तकलीफ़ें, बीमारियां, मृत्यु, ईर्ष्या, हिन्सा, द्वेष आदि-आदि।
सूर्य ऐसा अड़ा कि समझाये न समझे। वह कहता-फिरता था-"मैं पृथ्वी पर जाऊंगा! मैं सूर्य देखूंगा!!"
सबने मना किया- नहीं माना। सबने समझाया- नहीं समझा। उसे बताया गया-"यहां से एक बार निकले तो फिर वापसी नहीं हो पायेगी। रास्ता कभी नहीं मिलेगा। यहां की कोई स्मृति नहीं बचेगी। जिन तकलीफ़ों से यहां बचे हुए हो उनका सामना करना पड़ेगा। उसकी उम्र चूंकि नौ करोड़ साल से अधिक हो चुकी है इसलिए अब उसकी मौज़ूदा काया पृथ्वी के लिए बेकार हो जायेगी और उसे नवजात शिशु की काया मिलेगी।"
 वह सब झेलने को तैयार था। वह कछुए के समझाने पर भी न माना। हालांकि कछुआ भी उसी की तरह मानता था कि यदि सार्थकता न हो तो जीवन का कोई मतलब नहीं।
आखिरकार सबने तय किया कि सूर्य को पृथ्वी पर जाने का रास्ता और प्रक्रिया समझा दी जाये।
---
और अन्ततः सूर्य पृथ्वी पर था। एक साधारण मनुष्य की तरह। पिछले दिनों की कोई स्मृति नहीं थी। वह जल-लोक के बारे में कुछ नहीं जानता था। एक दिन वह गोवा में समुद्र-तट पर लावारिस पाया गया। एक भारतीय पर्यटक जोड़े ने उस नवजात शिशु को देखा था। स्थानीय थाने में उसके सम्बंध में जानकारी दर्ज़ करायी गयी। फिर भी उसके माता-पिता का पता न चला और अन्ततः उस जोड़े ने सूर्य को कानूनी लिखा-पढ़ी कर गोद ले लिया। एक साधारण कारोबारी दम्पत्ति की वह इकलौती संतान बना।
स्कूल की कक्षाओं में वह अक्सर फेल होता रहता था,  जबकि उसके माता-पिता उसे डॉक्टर बनाना चाहते थे। कई बार फेल होते-होते वह मुश्किल से बीएससी तक ही पढ़ पाया।
----
 वह एक ऐसा युवा था- जिसे खूब नींद आती थी। खूब सपने आते थे। वह प्रकृति को देखकर प्रफुल्ल हो उठता था। पशु-पक्षियों के प्रति आत्मीयता से भरा रहता। सूर्य की आराधना करता था और कहानियां लिखता था। उसकी कहानियों में पृथ्वी के प्रति प्रेम था। एक काल्पनिक स्त्री के प्रेम की लालसा थी। सूर्य और हवा के होने के अहसास को पूरी शिद्दत से उसने अपनी कहानियों में व्यक्त किया।
एक दिन उसकी कहानियों को पढ़कर एक युवती प्रेम करने लगी और उसका जीवन प्रेममय हो उठा। प्रकृति उसके लिए और अर्थवान हो उठी। लेकिन यह सब अधिक दिन नहीं चल पाया। एक दिन प्रेमिका की बेवफाई का उसे पता चला। उसने एक ऐसे दर्द को महसूस किया जिसका पहले अहसास नहीं हुआ था। इस नये अहसास के बाद जीवन के प्रति उसका मन उचाट हो गया। सारी चीज़ों के अर्थ बदल गये। दरअसल उसकी प्रेमिका उसकी बातों की गहराई नहीं समझ पाती थी। वह चाहती थी कि हल्की-फुल्की बातें करे। साधारण से सपने देखे, जो उसकी समझ में आने वाले हों। प्रेमिका को लगता कि सूर्य किसी और दुनिया का है। सूर्य की बातों में चाहकर भी वह नहीं आ पाया, जो उसकी प्रेमिका चाहती थी और यही उसकी प्रेम की विफलता का कारण बना।
उसका दिल ऐसा टूटा कि उसके जीवन का पहला प्रेम आखिरी प्रेम साबित हुआ। उसने बाक़ी जिन्दगी अकेले ही ग़ुजारने की फ़ैसला किया। अब उसके जीवन में केवल कहानियां बचीं। उसकी कहानियों में अक्सर एक नीले जल की भी चर्चा होती थी, जिससे मनुष्य के तमाम दु:खों का निवारण संभव था। समुद्र के नीचे एक और संसार की चर्चा थी, जिसमें वनस्पतियों और कछुए का भी उल्लेख था। वह नहीं जानता था कि वह समुद्र के नीचे की दुनिया के बारे में कैसे जानता है लेकिन प्रकृति के प्रति उसके प्रेम को दुनिया ने सराहा। सूर्य ने एक दिन एक कहानी लिखी जिसमें कहा गया था कि मनुष्य ने दरअसल उस जल को छोड़कर पृथ्वी के प्रेम में यह जीवन अपनाया है,  जो कष्टमय तो है लेकिन इसका सुख सम्मोहक है। पृथ्वी का जीवन अर्थवान है।
 आलोचकों का कहना था कहानीकार सूर्य ने जिस जल की चर्चा की है वह अमृत है और मनुष्य ही नहीं बल्कि देवता भी अमृत चाहते थे। ऐसे में उनकी कहानी बकवास है कि कोई अमृत छोड़कर साधारण मानव जीवन अपनाना चाहेगा। अमृत से जीवन की तमाम समस्याओं का निदान संभव है। देवता भले अमृत से मिले लाभ का इस्तेमाल राजकाज और अपने प्रताप को कायम रखने के लिए करें साधारण मनुष्य के लिए तो वह उसके तमाम दु:खों से निज़ात दिलाने की औषधि है।
----
सूर्य स्वयं नहीं जानता था कि उसकी समुद्र-कथाओं का उत्स क्या है ? वह स्वप्न में एक अज़ीब से नीले जल की दुनिया को अक्सर देखता था और जिसका उल्लेख उसने अपनी कहानी में किया था। अब वह उस दुनिया को लेकर बेचैन होने लगा। क्या सचमुच ऐसी कोई दुनिया संभव है जहां मनुष्य को कोई कष्ट न हो। जहां जनम-मरण का चक्र न चलता हो। कोई बीमार न पड़ता हो। यह मनुष्य जो तमाम अतृप्त इच्छाओं से घिरा हुआ है उसकी कोई अभिलाषा न हो। वह नीले तरल पदार्थ को लेकर लगातार सोचता।
अगर वह कहीं है तो वह कहां है। कहानियां पीछे छूट गयीं। वह हर वस्तु में व्याप्त तरलता पर ध्यान देने लगा। उसने पाया कि सबमें रस है। और वह रस ही उसका सारतत्व है। लोग बीज पर ध्यान देते हैं और उसे मूल मान बैठते हैं। बीज उत्पत्ति के क्रम से जुड़ा हुआ है। उसके क्रम को अपने ढंग से संचालित करता है किन्तु तरलता क्या करती है, जो इतनी महत्वपूर्ण है। उसे लगा दुनिया वैसी नहीं हो पा रही है जैसी होनी चाहिए उसका मूल कारण रस की उपेक्षा और बीज को मूल मान बैठने की गलती है। बीज क्रमिकता की ओर ले जाता है और रस अमरत्व और निरंतरता की ओर। रस में उत्पत्ति भी संभव है। किन्तु बीज में अमरत्व के आसार नहीं हैं। बीज का नष्ट होना और उससे नयी उत्पत्ति तय है।
उसने पुराण पढ़े। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकलने वाली वस्तुओं में रत्न कहा गया तथा वे चौदह रत्न थे जिनके नाम हैं- हलाहल, कामधेनु, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पद्रुम, रम्भा, लक्ष्मी, वारुणी (मदिरा), चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष, शंख, धन्वन्तरि वैद्य और अमृत। लेकिन जिस अमृत की तलाश उसे थी यह उससे बहुत कम और भिन्न था। वह देवताओं ने पी लिया था। वह उस सीमित अमृत की तलाश नहीं कर रहा था। यह था कुछ वैसा ही किन्तु उससे बहुत बहुत अर्थवान बहुत विस्तृत। समुद्र मंथन में जो मिला था वह तो अंश मात्र था। बाकी कहां है? मूल स्रोत कहां हैं ?  उसकी तलाश मूल स्रोत की थी।
वह अमृत दरअसल उस मंथन की प्रक्रिया की उर्जा है। और वह लगातार तैयार की जा सकती है। तो क्या लगातार अमृत का निर्माण संभव है। और क्या केवल समुद्र मंथन से ही बन सकती है उर्जा जो अमृत बने या फिर दुनिया की हर वस्तु अपने मंथन से वही उर्जा पैदा कर सकती है। समुद्र मंथन से निकली तमाम चीज़ें भी उर्जा के ही विभिन्न रूप हैं। उर्जा के और भी रूप हो सकते हैं।
वह समुद्र तट पर अक्सर बैठा रहता और नीले जल के बारे में सोचता रहता। सारे शास्त्र हमें सिखाते हैं शांत रहो। मनुष्य को शांत रखने के लिए तमाम विधियां अपनायी जाती हैं। सुख-दुख, जीवन-मरण से दूर रहने को हम अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य मानते हैं। जहां कोई भी संवेदना हमें प्रभावित न करे किन्तु यह तटस्थता तो मरण का लक्षण है। यही वह मोक्ष की स्थिति है। तमाम बंधनों से मुक्ति ही जीवन की असली मुक्ति है। यह आनंद ही अमरत्व का आनंद और अनुभूति है। अमृत तुम्हारे ही भीतर है। जो मनुष्य खोजता है वह उसी के भीतर होता है। उल्टा कहा जाये तो मनुष्य के भीतर जो होता है मनुष्य उसी को खोजता है। मनुष्य और कुछ खोज ही नहीं सकता। उसे कुछ और मिले तो वह संतुष्ट नहीं होगा। वह जिस विशेष धातु से बना है उसी की उसे तलाश रहती है। सूर्य नहीं जानता कि उसमें क्या है और वह किससे बना है?  उसे हमेशा लगता एक अदृश्य नीला दरिया हर समय उसके आसपास बहता है और लगातार उसे पुकारता है। वह उसमें नहाना चाहता है। सूर्य की नीले जल के बारे में उत्सुकता बढ़ती गयी। वह नीले जल की दुनिया में जाने को बेताब हो गया। वह स्वयं मानता है कि सृष्टि में जब-जब विस्फोट होते हैं कुछ न कुछ नया होता है। विध्वंस चूंकि निर्माण की ही एक कड़ी है इसलिए निर्माण के मूल को विध्वंस से जोड़कर देखना बेहद ज़रूरी है। उसे यह भी लगता था कि इस जांचने परखने के दो रास्ते हो सकते हैं एक-दुनिया में जो भी यौगिक हों उन्हें अलग-अलग करके देखा जाये। दो-जो यौगिक नहीं हैं उन्हें टकराकर देखा जाये। इन्हीं दो में छिपी हो सकती है महाविध्वंस की प्रक्रिया और उसी में छिपा हो सकता है सृष्टि के निर्माण का राज। इन सब विचारों को उसने कहानियों की शक्ल में लिखा। उसे यक़ीन था विज्ञान कभी न कभी कहानियों के पास लौटेगा, अपने सवालों के साथ। संसाधनहीन लोगों की सोच को आज भले कम करके आंका जा रहा है कभी न कभी उस ग़लती को सुधार लिया जायेगा।

सूर्य की कहानियों की न सिर्फ़ साहित्य की दुनिया में विशेष तौर पर चर्चा थी बल्कि आध्यात्म और विज्ञान के क्षेत्र में भी उसे गंभीरता से लिया जाने लगा था। कुछ लोगों के लिए वह गहन आध्यात्मिक विमर्श था, दूसरी ओर साइंस फिक्शन की दुनिया में वह नया सितारा था। वैज्ञानिक उसकी कहानियों को गंभीरता से लेने लगे और साधु-संतों के व्याख्यान में वह कोट किया जाने लगा। यही नहीं उससे मिलने आने वालों में विज्ञान के छात्र से लेकर विशेषज्ञ तक होते तो अध्यात्म से जुड़े लोग उससे मिलते, उससे बातें करते। अपनी शंकाओं के सामाधान चाहते। प्रश्न लेकर आते और उत्तर लेकर जाते।
पते की बात यह थी कि उसकी कहानियों की किताबें जहां साहित्यिक पुरस्कारों से नवाजी गयीं वहीं साइंस की पुस्तक के तौर पर भी उसकी मान्यता को लेकर आवाज़ें बुलंद होने लगीं। वैज्ञानिकों का एक धड़ा सूर्य की कहानियों की किताबों को विज्ञान की किताबें मानने पर ज़ोर दे रहा था और एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान एवार्ड के लिए उसकी कहानियों की किताब को भारत से नामांकित किया गया। नामांकन करने वाले वैज्ञानिकों ने जानेमाने खगोलविद प्रो.जयंत विष्णु नार्लिकर के उस कथन को भी अपनी संस्तुति का आधार बनाया जिसमें उन्होंने कहा है कि 75 फीसदी से ज्यादा सही अनुमान ही वैज्ञानिक तथ्य है। वे अनुमान या संभावनाएं वैज्ञानिक तथ्य के रूप में मान्य होती हैं, जो सांख्यिकी विश्लेषणात्मक तौर पर 75 फीसदी से ज्यादा सही मिलें। विज्ञान के स्वस्थ विकास के लिए तथ्य और संभावनाएं या अनुमान दोनों का होना जरूरी है। नार्लिकर इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीसीए) के संस्थापक हैं। इसलिए उनके तर्कों के वजन को स्वीकार किया गया और सूर्य को प्रतिष्ठित विज्ञान सम्मान प्रदान किया गया।

 सूर्य की बातों को अब दुनिया भर के विज्ञान जगत में गंभीरता से लिया जाने लगा और ब्रह्मांड की रचना के सम्बंध में उनकी बातों को उस समय और तरज़ीह दी जाने लगी जब बिग बैंग की तैयारियां शुरू हुईं।
तमाम आपत्तियों के बावजूद सूर्य को आखिरकार उन दस हजार वैज्ञानिकों में शामिल कर लिया गया, जो यूरोपियन सेंटर फार न्यूक्लियर रिसर्च (सीईआरएन) में कार्य करेंगे। लगभग 15 सालों में 7.7 अरब डॉलर की राशि खर्च करके एक लार्ज हैड्रान कोलाइडर (एलएचसी) की रचना की गई। इसे जमीन से 100 मीटर नीचे 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में स्थापित किया गया। इस महाप्रयोग द्वारा यह पता लगाने की कोशिश होगी कि महाविस्फोट के बाद कैसे हमारे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ होगा। इस प्रयोग से जुड़े वैज्ञानिक इसको लेकर काफी उत्साहित थे कि यह मशीन ब्रह्मांड के एक-एक कण का पता लगा सकेगी। यूरोपीय सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च द्वारा स्विट्जरलैंड में किए जा रहे प्रयोग में काफी तेज गति से प्रोटोनों का एक दूसरे से टकराया जाना था, जो हिग्गस-बोसोन का पहला व्यावहारिक परीक्षण होगा।
प्रयोग के ऐन पहले सूर्य और हवाई के दो वैज्ञानिकों ने प्रयोग को यह कहते हुए चुनौती दी है कि इससे धरती और यहां तक कि ब्रह्मांड के अस्तित्व तक को खतरा है। सीईआरएन के वैज्ञानिकों ने इस संभावना को पूरी तरह से नकार दिया। सूर्य ने बिग बैंग के खिलाफ अपने तर्कों को सिलसिलेवार लिखा और अपने तर्क दिये कि किस प्रकार विखंडन के नतीज़े सृष्टि के लिए ख़तरनाक़ साबित होंगे। उसने दस हजार वैज्ञानिकों के समक्ष सेंटर में हुई एक सभा में अपना पर्चा पढ़ा, जिसे उसने सूर्योन सिद्धांत नाम दिया। जिसके बाद हंगामा शुरू हो गया और तर्क-वितर्क भी। कई वैज्ञानिक उसकी स्थापनाओं से सहमत थे। विकसित देशों के प्रतिनिधियों के लिए सूर्य के तर्क़ ख़तरनाक़ संकेत थे। यदि सूर्य के तर्कों को मान्यता दे दी गयी तो न सिर्फ़ अरबों का यह प्रयोग रोक देना पड़ेगा बल्कि कई और गतिविधियां जो विकसित देशों में चल रही हैं उन्हें भी बंद करनी पड़ेगी। बरसों से चल रही विकास की कई और परियोजनाओं पर भी ग्रहण लग जायेगा और तो और पर्यावरण के संकट के लिए उन्हें ज़िम्मेदार और दोषी ठहराये जाने का रास्ता साफ़ हो जायेगा।
सूर्य के तर्कों से सहमत वैज्ञानिकों की आवाज़ बंद करने के उपाय शुरू हो गये। महाप्रयोग तय समय से ऐन पहले रोक दिया गया। सीईआरएन का कहना था कि दरअसल प्रयोग के दौरान हैलोजन गैस के रिसाव के कारण बाधा पैदा हुई। महाप्रयोग के लिए बनाई गई 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में हैलोजन गैस की मात्रा काफी बढ़ गयी। तकनीकी खामियों की वजह से महाप्रयोग अगले साल तक के लिए स्थगित कर दिया गया। कहा गया कि यह फैसला सैंकड़ों वैज्ञानिकों के लिए काफी दुखदाई है।
 हालांकि कुछ दबी-छिपी खबरें भी सुनने को मिलीं कि कुछ वैज्ञानिकों ने इस महाप्रयोग की आलोचना की थी। कुछ का कहना था कि महाप्रयोग बंद कर दिया गया तो वह सूर्योन पर खत्म हो जायेगा और अगला शांति का नोबेल सूर्य को मिलेगा। सूर्योन दरअसल एक सिद्धांत है, जो विखंडन का विरोध करता है। प्रकृति से छेड़छाड़ के विरोध के आधारों का प्रारूप,  जिससे आने वाले समय में तमाम वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए नैतिक दबाव बनेगा और सिद्धांत तय होंगे कि कौन सा प्रयोग करना है और कौन सा नहीं। यह पर्यावरण की समस्याओं से भी निजात दिलाने में मददगार साबित होगा. हालांकि विकसित देश इसके खिलाफ होंगे।
सूर्य से सहमत वैज्ञानिकों का यह भी मानना था कि इस महाप्रयोग के शुरू होते ही धरती के आसपास ब्लैक होल बनने प्रारंभ हो जायेंगे और पूरी धरती ही तबाह हो जाएगी। इस प्रयोग से पृथ्वी के चारों और बड़े पैमाने पर ऊर्जा पैदा हो जायेगी और मानवीय जीवन पूरी तरह खत्म हो सकता है।
----------
सूर्य की आपत्तियों के कुछ दिन बाद ही एक चौंकाने वाली घटना घटी। सूर्य प्रयोगशाला के अपने कक्ष में फांसी पर लटका पाया गया। बताया यह गया कि महाप्रयोग को लेकर उन्होंने जो तर्क दिये थे उन्हें पूरी तरह से अवैज्ञानिक कहकर नकार दिया गया था, जिससे वे बुरी तरह अपमानित महसूस करने लगे थे और उन्हें इस प्रोजेक्ट के अयोग्य पाकर उन्हें बाहर किये जाने की भी तैयारी चल रही थी। उनके अकादमिक वैज्ञानिक अध्ययन पर भी सवाल किये गये थे। उन्हें एक साजिश के तहत अरबों के प्रोजेक्ट में बाधा पहुंचाने का षड़यंत्र रचने का भी दोषी पाया गया था, जिसकी जांच होने वाली थी। जिससे उन्हें मानसिक क्लेश पहुंचा था और वे तनाव नहीं सह पाये जिसका परिणाम आत्महत्या के रूप में सामने आया। हालांकि इस महाप्रयोग के दौरान इस तरह की घटना ने वैज्ञानिकों की कार्यपद्धति के प्रति लोगों को चौंका दिया था लेकिन वैज्ञानिकों की दुनिया में यह नयी बात नहीं थी। प्रयोग की विफलताएं उन्हें तोड़ती रहती हैं और वे कई बार आत्महत्या तक कर बैठते हैं। कुछ वैज्ञानिकों ने सूर्य की मौत को हत्या करार दिया था। इस मामले की भी जांच शुरू हुई थी।
--
सूर्य की मौत के कुछ माह बाद महाप्रयोग फिर शुरू हुआ और 'सूर्योन' को दरकिनार कर प्रोटोनों को एक-दूसरे से टकराया गया और सूर्योन सिद्धांत की मूल प्रतियों को आग के हवाले कर दिया गया। और 'सूर्योन' का अस्तित्व कभी था भी या नहीं यह सदैव विवाद का विषय बना रहेगा।
---

1 टिप्पणी:

डॉ.अभिज्ञात ने कहा…

समूचे ब्रह्मांड को तबाह कर सकता है 'गॉड पार्टिकल'-हॉकिंग
(दोस्तो इस कहानी के प्रकाशन के एक साल बाद विश्वविख्यात भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने इसके मूल कथ्य को समर्थन दिया है)
लंदन (भाषा, 8 सितम्बर 2014): भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने आगाह किया है कि महज दो साल पहले वैज्ञानिकों ने जिस मायावी कण 'गॉड पार्टिकल' की खोज की थी उसमें समूचे ब्रह्मांड को तबाह-बरबाद करने की क्षमता है। एक्सप्रेस डॉट को डॉट यूके की एक रिपोर्ट के अनुसार हॉकिंग ने एक नयी किताब 'स्टारमस' के प्राक्कथन में लिखा कि अत्यंत उच्च ऊर्जा स्तर पर हिग्स बोसोन अस्थिर हो सकता है। इससे 'प्रलयकारी निर्वात क्षय' की शुरुआत हो सकती है जिससे दिक और काल ढह जा सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि इस ब्रह्मांड में हर जो चीज अस्तित्व में है हिग्स बोसोन उसे रूप और आकार देता है।
हॉकिंग ने बताया,-'हिग्स क्षमता की यह चिंताजनक विशिष्टता है कि यह 100 अरब गिगा इलेक्ट्रोन वोल्ट पर अत्यंत स्थिर हो सकती है।'
वह कहते हैं, -'इसका यह अर्थ हो सकता है कि वास्तविक निर्वात का एक बुलबुला प्रकाश की गति से फैलेगा जिससे ब्रह्मांड प्रलयकारी निर्वात क्षय से गुजरेगा।'
हॉकिंग ने आगाह किया,-'यह कभी भी हो सकता है और हम उसे आते हुए नहीं देखेंगे।'
बहरहाल, उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रलय के निकट भविष्य में होने की उम्मीद नहीं है। लेकिन उच्च ऊर्जा में हिग्स के अस्थिर होने के खतरे इतने च्यादा हैं कि उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।