7/02/2013

समकालिक स्वर को साहित्य में स्थान अवश्य देना चाहिए

एक-डेढ़ साल पहले प्रकाशित अपने पहले नेपाली कविता संग्रह 'डोंट टच मी ओ कविताएं' से चर्चा में आये  चंद्र कुमार घिमिरे कोलकाता में नेपाल के महा वाणिज्य दूत हैं। इधर उनकी कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी हो रहा है। प्रस्तुत है उनसे नेपाल के साहित्य परिदृश्य, उनकी अपनी रचनाशीलता और भारत-नेपाल के रिश्तों जैसे विभिन्न मसलों पर डॉ.अभिज्ञात से की गयी बातचीत

  • आप कब से कविताएं लिख रहे हैं।
मैंने लगभग 25-26 साल पहले विधिवत लिखना प्रारंभ किया था। वह मेरी कालेज लाइफ के दिन थे। हमारा एक साहित्यिक ग्रुप था, जिसे नेक्स्ट ग्रुप कहते थे। मेरा साहित्य में स्थान बनाना शुरू हुआ था और मेरा राष्ट्रीय स्तर पर प्रवेश हुआ था। पहले भी मैं लिखता था लेकिन वह उम्र और लेखन दोनों ही अपरिपक्व था। जब लेखन की ठीक-ठाक समझ आयी तो ग्रुप बनाया। हमारे ग्रुप के कवियों ने नेपाली साहित्य में राष्ट्रीय स्तर पर लहरें पैदा कीं। हम चार-पांच बहुत ही जोशीले लेखकों ने यह किया।
  •  किन्तु आपका पहला कविता संग्रह तो बहुत देर से आया, साल-डेढ़ साल पहले। उसका नाम कुछ अजीब सा है- 'डोंट टच मी ओ कविताएं', जिससे लगता है कि आप कविताओं से दूरी बनाना चाहते हैं। उसके क्या कारण हैं।
 यह नाम इसी शीर्षक से लिखी गयी मेरी एक कविता से लिया गया है। मैंने 1992 में यह कविता लिखी थी और उसके बाद कविता लिखना छोड़ दिया था। किन्तु मैं अपने उस निश्चय पर कायम नहीं रह पाया। उसके लगभग 20 साल बाद मैंने कविता लिखी 'टच मी ओ कविताएं'। इन दोनों कविताओं पर नेपाली साहित्य में बहुत कुछ कहा गया है।
  • क्या आपके ग्रुप के सभी सदस्यों ने लिखना छोड़ दिया था?
उत्तर: नेपाली साहित्य के इतिहास में हमारे ग्रुप को बीटल्स जैसा ग्रुप माना जाता है। उनके सदस्य लेखन जारी नहीं रख सके। उसमें से एक फिलासफर था, जो यू जी कृष्णमूर्ति से प्रभावित हो गया और उन पर उसने कई किताबें लिखीं। एक अन्य सदस्य ने फिल्मों की राह पकड़ ली। वह एक अलग किस्म का सिनेमा बनाता है जिसमें वह गंभीर मुद्दे उठाता है। एक अन्य सदस्य की मौत हो गयी, जबकि वह एक महत्वपूर्ण कवि था। कविता से इतर हमने अपने जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखे।
  • एक बार कलम छूटने के बाद मुश्किल होती है..
बिल्कुल..लेकिन मैं कविता की दुनिया में लौटा। इसलिए मेरे काव्य संग्रह के प्रकाशन में अनपेक्षित विलम्ब हुआ। इस संग्रह में मेरी लगभग 25 साल की कविताएं संकलित हैं। इस बीच मैं फिर लिख रहा था पढ़ रहा था लेकिन उन्हें प्रकाशित नहीं कराता था। ये दो कविताएं जो मैंने लिखीं वो अपने आपमें इतिहास बन गयीं। उसके ऊपर नेपाली साहित्य में काफी चर्चा हुई। बरसों बाद बिल्कुल विपरीत तरह से मैंने लिखा और अब लिखने में निरंतरता बरत रहा हूं तो ये एक नये तरह का उदाहरण था।
  • इन कविताओं का क्या दूसरी भाषाओं में अनुवाद हुआ है?
हिन्दी में हो रहा है। हिन्दी के प्रकाशक भी सम्पर्क कर रहे हैं।
  • भारत में जो कविताओं लिखी जाती हैं क्या उन्होंने नेपाली साहित्य को प्रभावित किया है। आप भारत के किन रचनाकारों से प्रभावित रहे हैं?
बहुत कम उम्र में मैं रवीन्द्रनाथ टैगोर से प्रभावित हो गया था। फिर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने बेहद प्रभावित किया। उसके बाद कमलेश्वर, अमृता प्रीतम और इधर केदारनाथ सिंह के साहित्य का प्रभाव पड़ा।
  •  क्या भारत में साहित्य के बदलते परिदृश्य का नेपाल में भी असर होता है?
 बिल्कुल। जब यहां जटिल कविताएं लिखी जाती थीं तो नेपाली साहित्य में भी वही ट्रेंड़ था। फिर सरलता और बोधगम्यता पर जोर दिया जाने लगा था, नेपाली में भी वह हुआ। नेपाल के लोगों का जो बाहर दुनिया से पहला सम्पर्क होता है वह भारत और हिन्दी से ही होता है। नेपाल के ज्यादातर लोग भले ठीक से हिन्दी न बोल पायें लेकिन लगभग सभी लोग हिन्दी समझ लेते हैं। यहां का साहित्य, फिल्म और संगीत वहां बहुत सराहा जाता है। इन दोनों देशों में एक और कॉमन चीज है वह है गरीबी। इन दोनों देशों को दुनिया के सबसे गरीब लोगों का समाज माना जाता है।
  •  किसी जमाने में दार्जिलिंग को नेपाली संस्कृति की राजधानी कहा जाता था..क्या अब भी वह स्थित बरकरार है?
 मैं अब एक गैप देख रहा हूं। बंगला क्लासिक्स का अनुवाद आया है नेपाली साहित्य में। रवीन्द्रनाथ, शरतचंद्र, बंकिमचंद्र आदि का नेपाली में अनुवाद हुआ है। लोग उनसे प्रभावित भी हैं लेकिन बाद में उतना अनुवाद नहीं हो पाया जितना अपेक्षित था। अब दार्जिलिंग की जगह काठमांडू ने ले ली है। संगीत, साहित्य और कला के ट्रेंड पहले दार्जिलिंग से शुरू होते थे व नेपाल पहुंचते थे और उसे प्रभावित करते थे किन्तु अब स्थिति बदल गयी है। अब नेपाली में नया ट्रेंड काठमांडू से ही शुरू होता है। नये प्रकाशन वहां हो रहे हैं। अब साहित्य उत्सव वहां होने लगे हैं। नेपाल में भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से साहित्य की प्रमुख हस्तियां वहां जाती हैं। वहां साहित्य फेस्टिवल में खूब चकाचौंध होती है। पाठकों का, साहित्यप्रेमियों का  एक बड़ा समाज वहां तैयार हो चुका है। समाज के सभी वर्ग व स्तर के लोगों की उसमें भागीदारी रहती है। नेपाली साहित्य में रीडरशिप बहुत बढ़ी है। साहित्यिक किताबें बहुत बिकती हैं। बहुत वाइब्रेंट प्रकाशक हैं जिनके बीच स्पर्धा है अधिक से अधिक और बेहतरीन पुस्तकें छापने की। कोई 20-30 साल पहले लेखकों को दर-दर भटकना पड़ता था। अब तो जो अच्छा लिखता है उसे पहली ही कृति के लिए जल्द प्रकाशक  मिल जाते हैं। अब नेपाली का लेखक लेखन को अपना प्रोफेशन बना सकता है, ऐसी स्थिति पैदा हो रही है। अब लेखक सेलिब्रिटी होने लगे हैं।
  • आपने अभी कुछ देर पहले कहा कि भारत और नेपाल में कॉमन है वह है गरीबी। गरीबी के कारण भी एक ही हैं या वे अलग हैं?
दोनों समाजों का भूगोल एक जैसा है। भाषा और धार्मिक वातावरण भी एक है। हमारी जो सामाजिक अर्थव्यवस्था है आर्थिक प्रभाव डालने वाले कारक भी एक जैसे हैं। सामाजिक विशेषता और संरचना एक जैसी है। प्रतिक्रिया एक जैसी है। दूरियां नहीं हैं। दोनों देश बाहरी दुनिया को एक जैसे ही देखते हैं। गरीबी भी एक ही प्रकार की है। हमारा समाज अर्ध सामंतवादी रहा है और भारत में भी सामंतवाद के अवशेष किसी न किसी रूप में हैं। सामाजिक स्तरीकरणवाला वर्गीकृत समाज है। हमारे यहां की गरीबी का जो स्वरूप है वह मिलता-जुलता है। दोनों ही देशों में भाग्यवाद है, जिसका गरीबी के साथ गहरा रिश्ता है। इस प्रकार नेपाल और भारत में सामंतवाद, सामाजिक स्तरीकरण और भाग्यवाद तीन ऐसे कारण हैं जो दोनों देशों में गरीबी के मूल कारण हैं।
  •  साहित्य में कला और विचार में से किसे महत्वपूर्ण मानते हैं?
मैं दोनों के सामंजस्य को महत्वपूर्ण मानता हूं। विचार अधिक हुआ तो मेरे ख्याल में वह साहित्य नहीं नारा होता है। हालांकि कलात्मकता के साथ विचार तो होना ही चाहिए। विचार के कारण साहित्य में कलात्मकता का भी महत्व बढ़ जाता है। मुझे दोनों का संतुलन अधिक पसंद है। केवल कलात्मकता से श्रेष्ठ साहित्य का सृजन संभव नहीं। समकालीन समाज की जो आवाज है, वह साहित्य में अवश्य होनी चाहिए। साहित्य आखिर सकारात्मक परिवर्तन के लिए और समाज को सही दिशा देने के लिए होता है। समकालिक स्वर को साहित्य में स्थान अवश्य मिलना चाहिए।
  • नेपाल की किन विशेषताओं को रेखांकित करना चाहेंगे?
नेपाल में बहुसंख्यक हिन्दू हैं लेकिन दूसरे धर्म और विश्वास के लोग भी वहां रहते हैं। बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई भी हैं। उनमें जो सद्भावना और तालमेल है, वह अतुलनीय है। नेपाल में सौ से अधिक भाषाएं हैं लेकिन भाषा को लेकर कोई तनाव नहीं है और ना साम्प्रदायिक तनाव है। नेपाल भारत से 26-27 गुना छोटा है लेकिन वैविध्यपूर्ण है। भौगोलिक विविधता व प्राकृतिक सौंदर्य मनोहारी है। माउंट एवरेस्ट हमारे पास है। दुनिया में पहाड़ की 14-15 ऊंची चोटियां हैं, उनमें से 9-10 नेपाल में हैं। गौतम बुद्ध का जन्म स्थान नेपाल के लुम्बिनी में है, जिसके कारण भी दुनियाभर के लोग वहां आते हैं। नेपाल बुद्ध की जन्मभूमि है और भारत कर्मभूमि है।
  • भारत-नेपाल के रिश्तों के सम्बंध में क्या कहना चाहेंगे?
नेपाल और भारत के बीच जो रिश्ता है वह अद्वितीय है। वह दो देशों का ही नहीं घरेलू रिश्ता भी है। भारत के कई परिवारों के कई करीबी रिश्तेदार नेपाल में हैं। किसी की मां, किसी के पिता वहां के हैं तो किसी की बहन या भाई का वहां ब्याह हुआ है। वहां मारवाड़ी परिवार भी हैं, बिहार मूल को लोग भी रहते हैं।

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