2/11/2015

असद जैदी का पत्र-अभिज्ञात के नाम

लेखकों का पत्र 
(जल्द ही पत्र का स्केन साथ होगा)
आपका संग्रह सरापता की सभी कविताएं अच्छी हैं और पठनीय। पहली नजर में सरापता हूं, हक पर साझा, वंशावली के लिए काफी अच्छी कविताएं हैं। आपकी इधर की कविता में एक खास तरह की तराश और हुनरमंदी दिखाई देती है, और एक बहुस्तरीय अभिव्यक्ति भी। फिर भी मैं अपना एकाध दुराग्रह और आशंका आपके सामने रखना चाहता हूं। मुझे लगता है कि इस कविता में वैसा अन्तर्द्वन्द्व और बेकली नहीं जिसे मैंने आपके पिछले संग्रह एक अदहन हमारे अंदर की किसी कदर अनगढ और कमतर कविता में पाया था। मैं आपसे हरगिज वापस मुडने के लिए नहीं कहता, बल्कि महज यह उम्मीद करता हूं कि आप प्रस्तुत संग्रह के काव्य को अपनी काव्य यात्रा का ऐसा पडाव मानकर चलेंगे जहां बहुत वक्त तक डेरा नहीं डाला जा सकता।
एक सरल, काव्योचित और शायद कवि स्वभाव के बुनियादी गुण हैं, लेकिन एक प्रवृत्ति के बतौर इनके अतिरेक ने समकालीन हिन्दी कविता का, मेरे विचार से, काफी नुकसान किया है। निष्कर्ष रूप में इसने कवियों को आरामतलबी, द्वन्द्वहीनता, उत्सवहीनता (चाहे वह जनवादी या प्रगतिशील प्रकार की उत्सवधर्मिता क्यों न हो) और अपने समय के यथार्थ से पलायन पर मजबूर किया है।
16.4.1992
सी 8796 वसंत कुंज, नई दिल्ली

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