3/29/2015

इस्मत चुगतई पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार

कोलकाता में इस्मत जुगतईः फि़क्र ओ फ़न विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के अन्तिम दिन 28 मार्च 2015 को पश्चिंम बंग उर्दू एकेडमी के मौलाना आजाद आडिटोरियम में वक्ता अनीस रफी, डॉ.मोहम्मद काज़मी, डॉ.अभिज्ञात, देवव्रत सान्याल, अजहर आलम व नुसरत जहां। डॉ.मोहम्मद काज़मी एवं अजहर आलम ने इस्मत के नाटकों पर प्रकाश डाला। इन दोनों ने उर्दू में अपने आलेख पड़े। देवव्रत सान्याल ने अंग्रेज़ी में वक्तव्य दिया और इस्मत चुगतई की चर्चित कहानी लिहाफ की औपनिवेशक और उत्तर औपनिवेशिक परिदृश्य में व्याख्या की और अंग्रेज़ी साहित्य के रुझानों से कहानी की तुलना की। डॉ.अभिज्ञात ने 'वक़्त से आगे इस्मत चुगतई' आलेख में कहा कि वे अपने वक़्त से काफ़ी आगे की रचनाकार थीं। सत्तर साल पहले ही उन्होंने स्त्री होने के नाते अभिव्यक्ति के जिन ख़तरों को उठाया, उसका साहस आज भी मुस्लिम समुदाय की महिलाएं नहीं कर पातीं। इस्मत आपा ने जो जिया उसे लिखा और जो लिखा उसे जिया। उनका जीवन उनकी रचना की खूराक थी। जो प्रयोग उन्होंने अपनी रचनाओं में किये वही प्रयोग जीवन में भी किये। वे केवल उदार नजरिये की ही नहीं बल्कि उदार जीवन की भी मिसाल हैं। उनकी रचनाओं और जीवन में कोई फांक नहीं है। वे दुहरा जीवन जीने वाली रचनाकार नहीं थीं। वे अपने समकालीन हिन्दी की साहित्यकार महादेवी वर्मा और पंजाबी की साहित्यकार अमृता प्रीतम की तरह एक रचना व्यक्तित्व को गढ़ने में सफल रही थीं।
डॉ.अभिज्ञात ने कहा कि इस्मत चुगतई ने आत्मकथात्म या संस्मरणात्मक लेखन किया है और टेढ़ी लकीर जैसे उपन्यास तो उनके जीवन के काफी हिस्से को ही उजागर करता है। कहना न होगा कि कोई लेखक जब अपने जीवन की घटनाओं को सार्वजनिक करता है तो उसके साथ साथ उसके परिचितों, परिजनों का जीवन भी गोपनीय नहीं रह जाता। लेकिन आम दुनियादार व्यक्ति दोहरा जीवन जीते हैं ऐसे में ये लेखक अपने परिचितों के लिए मुसीबत का सबब बन जाते हैं। इस्मत को भी उसकी कीमत चुकानी पड़ी। इस्मत ने अपने परिवेश को निर्भीकता से चित्रित किया है और आपनी बातों के पक्ष में वे डट कर खड़ी रहीं और परिस्थितियों को मुकाबला किया। उनके लिए लिखना और जीना एक था। यह सेमिनार आल इंडिया कौमी एकता मंच की ओर से आयोजित था, जिसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत नेशनल कौंसिल फार प्रमोशन आफ उर्दू लेंग्वेज की ओर से प्रयोजित था। कार्यक्रम की अध्यक्षता उर्दू के प्रख्यात कथाकार एवं नाटककार अनीस रफी ने की।