10/14/2018

कविता में मानवीय संवेदनाओं के इतिहास की रचना


पुस्तक समीक्षा
पुस्तकः खुशियों का ठोंगा/लेखक: अमित कुमार अम्बष्ट ‘आमिली’/प्रकाशकः उदंत मरुतृण, म.स. 46/2/2, 15 नापित पाड़ा मेन रोड, विधान पल्ली, बैरकपुर, पो.नोना चंदन पुकुर, उत्तर 24 परगना, कोलकाता-700122
देश के एक सामान्य व्यक्ति के देहाती व कस्बाई लगते लगाव, स्वप्न, संघर्ष और उसके विस्तार, उसकी इच्छाओं-आकांक्षाओं की उड़ान को संवेदनशीलता और भोलेपन के साथ व्यक्त करता काव्य-संग्रह है 'खुशियों का ठोंगा'। अमित कुमार अम्बष्ट ‘आमिली’ की यह पहली ही कृति आश्वस्त करती है कि उनके पास बहुत कुछ है, जो आने वाले समय में बेहतर लिखवायेगा। इस कृति में उन्होंने हमारी परिचित दुनिया की भूली-बिसरी, हाशिए पर पड़ी साधारण लगती हलचलों को अर्थवान तरीके से व्यक्त किया है। उनकी बानगी में हड़बड़ी नहीं है। उनकी कविता में खिचड़ी आराम से पकती है, जो हमारी परम्परा से निकलकर पश्ती के गझ्झिन दिनों, गरीबी व खाना बनाने के कौशलहीनता के दौर में ताक़त बन जाती है।
उनकी कविता में वह पिता हैं, जो संयम का जीवन जीते हैं। लेकिन इतना भर नहीं है। कवि कहता है- ‘खुद को संयमित कर/ सिखाया है मुझे कि/मेरे पांव टिके रहें ज़मीन पर/तब भी-जब मैं उड़ सकता हूं/आसमानों पर।’ उनकी कविता में वह मां है जो ईश्वर सदृश्य है-'मां के ममत्व की परिधि/कई बार कोशिश की है/मापने की-/भूतल के गहराई से/विस्तृत आकाश से भी/नापा है कभी/और झांका है/क्षितिज के पार भी/पर, न जाने क्यूं/सब छोटे पड़ जाते हैं/मां के आगे!' इन दोनों कविताओं में कवि जिस निष्कर्ष तक पहुंचता है, वही उसका मूल स्वर है। और वह उनकी कई कविताओं तेजतर हुआ है।
इसी क्रम में हरे रंग की लालटेन गौरेया आदि कविताओं से एक नास्टेल्जिक लगाव झरता है और पाठक को अपने विस्मृत लोक में ले जाता है। वे संवेदनाओं की पोटली में मूल्यों को जतन से सहेज कर बांधे रखने वाले व्यक्ति हैं। फिर इस पोटली के संसार को अपनी कविता में धीरे-धीरे खोलते हैं। वे नहीं चाहते उनके न होने पर उनके पेशेवर काम-काज की उपलब्धियों की चर्चा हो। वे चाहते हैं चर्चा हो उनकी भावना और आचार-विचार की। आदमीयत की। वे खुदाई में मिले डायनासोर के जीवाश्म की चर्चा के दौरान इस कसक को भी व्यक्त करते हैं कि काश पुरातत्व शोधक मानव अवशेष के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं के चिह्न भी खोज पाते।
उनके पास संवेदना का पूरा संसार है जिसमें उनकी प्रियतमा पत्नी भी है। वे लिखते हैं-'अब पतीले में/चावल संग इश्क़ उबलता है घर में/शायद वो आटे संग/उल्फत का चोकर मिलाती है/मेरी रसोई के जूठे बर्तन से भी/अब मुहब्बत की खुशबू आती है।' प्रेम व दाम्पत्य जीवन पर पूरा एक खण्ड ही है इस संग्रह में। 'हरे पत्ते' कविता में वे लिखते हैं-'पुरानी क़िताबों के बीच/दफ़न हैं कुछ पुराने ख़त/जो लिखे तो सही मैंने/लेकिन कभी दिये नहीं।'
जीवन की आपाधापी व दैनंदिन की कठोर होती जाती चुनौतियों से भी कवि दो-चार हुआ है। सेल्समैन का टारगेट, लक्ष्य जैसी कविताएं इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इन सब के बीच देहव्यापार से जुड़ी स्त्रियों पर लिखी कविता 'सेमल की रुई'अलग किस्म की और अलग से रेखांकित करने योग्य है। कविता की एक बानगी देखें-'उनकी आंखों में/सिर्फ़ पुतलियां नहीं/तेज-धार बंसी जड़ी होती है/मछलियां पकड़ने वाली/जिसमें वो कर लेती हैं बड़े-से-बड़े/सफ़ेदपोश जानवर का शिकार/वो रोज़ नहाती भी नहीं हैं/पर उनके जिस्म से/बदबू नहीं आती कभी/वो सेमल की रुई की तरह/हल्की भी होती हैं/तोल दी जाती हैं/चंद सिक्कों के एवज में/और हर रोज़ धुनी भी जाती हैं/बिस्तर गर्म करने के लिए।' यह कविता में चंद सिक्कों के लिए तोल दिया जाना और रुई की तरह धुन दिया जाना है, वह देर तक पाठक के मन में को वेधता रहता है। इन शब्दों का अर्थ विस्तार उनकी कविता को नयी ऊंचाई तक ले जाता है। कवि अमित के लिए कविता मानवीय संवेदनाओं का इतिहास है। ऐसा वे 'मत छोड़ना लिखना तुम' कविता में कहते हैं, तो संकेत मिलता है कि वे स्वयं मानवीय संवेदनाओं के इतिहास को अपनी रचना का सर्वोत्तम गुण और लक्ष्य मानते हैं। और यह बहुत बड़ा गुण है।-डॉ.अभिज्ञात

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