गीत/ डॉ.अभिज्ञात
--------------------------
पांच साल में फिर आया है अवसर आज चुनाव का।
चुन लो यारो, खुद ही चुन लो मरहम अपने घाव का।
किसके बल पर करनी हमको दुनिया की अगुवाई
किसकी बांट जोहती अपने नवयुग की तरुणाई
कौन संदेशे लेकर आया स्थिति में बदलाव का।
पांच साल में फिर आया है मौका आज चुनाव का।
कौन हमारी साझी विरासत का रखवाला होगा
किस ध्रुवतारे पर रीझें हम, किससे उजाला होगा
कौन बनेगा सेतु हमारे अनचाहे अलगाव का।
पांच साल में फिर आया है मौका आज चुनाव का।
बांट नहीं सकती फिरकों में हर ताकत नाकाम है
जहां भी जाग्रत, जहां भी चौकस रहती हो आवाम है
टिकी नहीं चट्टान कोई जो रोके राह बहाव का।
पांच साल में फिर आया है मौका आज चुनाव का।
--------------------------
पांच साल में फिर आया है अवसर आज चुनाव का।
चुन लो यारो, खुद ही चुन लो मरहम अपने घाव का।
किसके बल पर करनी हमको दुनिया की अगुवाई
किसकी बांट जोहती अपने नवयुग की तरुणाई
कौन संदेशे लेकर आया स्थिति में बदलाव का।
पांच साल में फिर आया है मौका आज चुनाव का।
कौन हमारी साझी विरासत का रखवाला होगा
किस ध्रुवतारे पर रीझें हम, किससे उजाला होगा
कौन बनेगा सेतु हमारे अनचाहे अलगाव का।
पांच साल में फिर आया है मौका आज चुनाव का।
बांट नहीं सकती फिरकों में हर ताकत नाकाम है
जहां भी जाग्रत, जहां भी चौकस रहती हो आवाम है
टिकी नहीं चट्टान कोई जो रोके राह बहाव का।
पांच साल में फिर आया है मौका आज चुनाव का।
2 टिप्पणियां:
लेकिन यहां लोगों को अक़्ल कहां आती है.
bahut hi achhi baat kahi hai aapne ........... magar log samajhte kahan?
एक टिप्पणी भेजें