9/19/2010

हर दूजा बटमार है

 गीत /डॉ.अभिज्ञात
सोच-समझ के वोट डालना हर दूजा बटमार है।
जिसके कारण लोकतंत्र का अपने बंटाधार है।

कोई जाति के नाम पे मांगे धर्म कोई दिखलाये
कोई मंदिर-मस्जिद कहकर जनता को भरमाये
डूब रही हर एक व्यवस्था नाव बीच मंझधार है।
सोच समझ के वोट डालना हर दूजा बटमार है।

गोदामों में सड़े अन्न और भूखे मरते लाल हैं
कौन है ज़िम्मेदार सोच लो क्योंकर हम बदहाल हैं
किसका स्वागत करोगे सोचो किसके लिए दुत्कार है।
सोच समझ के वोट डालना हर दूजा बटमार है।

कोई सपने बेच रहा है झांसे में मत आना
अपने देश की बागडोर को सही हाथ पकड़ाना
चुन लो भाग्य-विधाता अपना चुनने का अधिकार है।
सोच समझ के वोट डालना हर दूजा बटमार है।

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