कथ्य और डिटेल पर बराबर पकड़
78 साल की उम्र पार करने के बाद, यहां कोलकाता से दूर गुवाहाटी में वहां रह रहे अतिप्रिय अभिज्ञात को पढ़ना एक सुखद अनुभव था। इधर कुछ सालों में पढ़ना-लिखना कम हो गया है, लगभग छूट गया है। किन्तु एकाएक कूरियर से अभिज्ञात का नया उपन्यास 'कला बाज़ार' आया और साहित्य की दुनिया से फिर जुड़ना हुआ। अभिज्ञात को मैं बरसों से जानता हूं, सो उसे उत्सुकता से पढ़ा। नयी पीढ़ी की कविता लिखने वालों में जो चार-छह नाम लिये जा सकते हैं उनमें एक अभिज्ञात का भी है। उसकी निरन्तर रचनात्मकता मुझे आकृष्ट करती है। आगे पढ़िये