कोलकाता : भारतीय दंड विधान की धारा 377 एवं एजीबीटी समुदाय के मानवाधिकार विषय पर 'कोलकाता रिश्ता' संस्था की ओर से एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। एजीबीटी का अर्थ है-समलैंगिक स्त्री (लेस्बियन), समलैंगिक पुरुष (गे), उभयलिंगी (बायसेक्सुअल) और विपरीत लिंगी (ट्रांसजेंडर)। संस्था के कार्यों तथा समुदाय के लोगों के संघर्षों के सम्बंध में विस्तृत चर्चा संस्था के सचिव डॉ.संतोष गिरि ने की। परिचर्चा में हाईकोर्ट के एडवोकेट कौशिक गुप्ता, प्रोफेसर जायेद अल बसर, साहित्यकार डॉ.अभिज्ञात, सामाजिक कार्यकर्ता परमिता बनर्जी एवं पवन ढल्ल ने भाग लिया। वक्ताओं ने परिचर्चा में कहा कि धारा 377 में संशोधन का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय के अधीन है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में संशोधन किया जाना चाहिए और वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनने वाले यौन संबंधों को कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए।
पुस्तकों का प्रकाशन विवरण
- लेखकों के पत्र
- कहानी
- तीसरी बीवी
- कला बाज़ार
- दी हुई नींद
- वह हथेली
- अनचाहे दरवाज़े पर
- आवारा हवाओं के ख़िलाफ चुपचाप
- सरापता हूं
- भग्न नीड़ के आर पार
- एक अदहन हमारे अन्दर
- खुशी ठहरती है कितनी देर
- मनुष्य और मत्स्यकन्या
- बीसवीं सदी की आख़िरी दहाई
- कुछ दुःख, कुछ चुप्पियां
- टिप टिप बरसा पानी
- मुझे विपुला नहीं बनना
- ज़रा सा नास्टेल्जिया
- कालजयी कहानियांः ममता कालिया
- कालजयी कहानियांः मृदुला गर्ग
12/13/2012
धारा 377 व एजीबीटी समुदाय पर परिचर्चा सम्पन्न
कोलकाता : भारतीय दंड विधान की धारा 377 एवं एजीबीटी समुदाय के मानवाधिकार विषय पर 'कोलकाता रिश्ता' संस्था की ओर से एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। एजीबीटी का अर्थ है-समलैंगिक स्त्री (लेस्बियन), समलैंगिक पुरुष (गे), उभयलिंगी (बायसेक्सुअल) और विपरीत लिंगी (ट्रांसजेंडर)। संस्था के कार्यों तथा समुदाय के लोगों के संघर्षों के सम्बंध में विस्तृत चर्चा संस्था के सचिव डॉ.संतोष गिरि ने की। परिचर्चा में हाईकोर्ट के एडवोकेट कौशिक गुप्ता, प्रोफेसर जायेद अल बसर, साहित्यकार डॉ.अभिज्ञात, सामाजिक कार्यकर्ता परमिता बनर्जी एवं पवन ढल्ल ने भाग लिया। वक्ताओं ने परिचर्चा में कहा कि धारा 377 में संशोधन का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय के अधीन है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में संशोधन किया जाना चाहिए और वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनने वाले यौन संबंधों को कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए।
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