5/05/2017

कविता/भेंट की गयी किताब



डॉ.अभिज्ञात
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नहीं
अब मैं नहीं भेंट करूंगा किसी को अपनी लिखी किताब
उसका नाम लिखकर

नाम लिखने से हो जाती है वह किसी की निजी सम्पदा
उसकी अकड़ का सबब
प्रदर्शन और यार दोस्तों में रौबदाब की चीज़
किताब नहीं रह जाती पढ़ने-पढ़ाने के लिए
वह बदल जाती है देखने दिखने की शै में

जैसे ही मैं किसी का नाम लिखता हूं क़िताब पर
सारे शब्द करने लगते हैं उस नाम की ओर इशारा
उसी को सम्बोधन
ढहा दी जाती है उस व्यक्ति के प्रति मेरी तमाम असहमतियां
जैसे आग से निकाल ली गयी हो उसकी आंच

किसी का नाम लिखते ही हो जाती है क़िताब दूसरे लिए
वैसे ही जूठी जैसे दूसरे का भोजन

किसी अन्य का पहना हुआ कपड़ा

कई बार तो लगता है
जैसे हो किसी और की छोड़ी हुई सांस

कोई और नहीं पढ़ना चाहता
दूसरे का नाम लिखी हुई क़िताब

ऐसी क़िताबें प्रायः मिल जाती हैं फुटपाथ पर रद्दी के कुछ ही अधिक दाम पर

जैसे कम हो जाती है क़ीमत फटे नोट की
वैसे ही अवमूल्यन हो जाता है कि़ताब का कोई नाम लिखते ही
जैसे रिसेल में बेचा जाये नया मोबाइल फ़ोन
नयी कार
नयी बाइक

कई बार ऐसा ही हुआ है
किसी का नाम लिखकर डाक से भेजी क़िताब और वह लौट आयी
पता बदलने की वज़ह से
या उसके दुनिया से कूच कर जाने की वज़ह से
बन जाती है जी का जंजाल
न रखते बनता है और ना ही किसी को देते

एकाध बार वह सफ़ा फाड़ कर दिया है किसी और को या नाम काटकर
सामने वाले की मूक प्रतिक्रिया ने भी हिला दिया है
वह जानता है कि मैं उसे सौंप रहा हूं किसी अन्य को सम्बोधित क़िताब
जैसे कि मैंने उसे मान रखा हो उपेक्षित..और दिखावा करता हूं यूं ही क़रीबी होने का

मैं क़िताब को किसी एक का होने के ख़िलाफ़ हूं
ख़रीदने से भी किसी की सम्पत्ति नहीं हो जाती क़िताब
तो फिर किसी को भेंट कर
कैसे होने दूं किसी एक की

क्षमा करें दोस्तो
कोई किताब किसी के पास हो तो इतनी कृपा करें
पढ़ना पसंद हो तो ही पढ़ें और फिर
उसे किसी को भी सौंप दें प्रेम से
ब़गैर उसका नाम लिखे
ताकि वह पढ़े और छोड़ दे किसी बेंच पर किसी और अज़नबी के लिए
कोई भी क़िताब किसी एक की नहीं होती...

उसे जायदाद बनने से बचायें...

और मेरी क़िताबों मुझे माफ़ करना
अब तक की गयी मेरी इस बदसलूकी के लिए।


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