4/28/2017

वक़्त से आगे इस्मत चुगतई


-डॉ.अभिज्ञात
इस्मत चुगतई अपने वक़्त से काफ़ी आगे की रचनाकार थीं। सत्तर साल पहले ही उन्होंने स्त्री होने के नाते अभिव्यक्ति के जिन ख़तरों को उठाया, उसका साहस आज भी मुस्लिम समुदाय की महिलाएं नहीं कर पातीं। इस्मत आपा ने जो जिया उसे लिखा और जो लिखा उसे जिया। उनका जीवन उनकी रचना की खूराक थी। जो प्रयोग उन्होंने अपनी रचनाओं में किये वही प्रयोग जीवन में भी किये। वे केवल उदार नजरिये की ही नहीं बल्कि उदार जीवन की भी मिसाल हैं। उनकी रचनाओं और जीवन में कोई फांक नहीं है। वे दुहरा जीवन जीने वाली रचनाकार नहीं थीं। वे अपने समकालीन हिन्दी की साहित्यकार महादेवी वर्मा और पंजाबी की साहित्यकार अमृता प्रीतम की तरह एक रचना व्यक्तित्व को गढ़ने में सफल रही थीं।
इस्मत चुगतई ने आत्मकथात्मक या संस्मरणात्मक लेखन किया है और टेढ़ी लकीर जैसे उपन्यास तो उनके जीवन के काफी हिस्से को ही उजागर करता है। कहना न होगा कि कोई लेखक जब अपने जीवन की घटनाओं को सार्वजनिक करता है तो उसके साथ साथ उसके परिचितों, परिजनों का जीवन भी गोपनीय नहीं रह जाता। लेकिन आम दुनियादार व्यक्ति दोहरा जीवन जीते हैं ऐसे में ये लेखक अपने परिचितों के लिए मुसीबत का सबब बन जाते हैं। इस्मत को भी उसकी कीमत चुकानी पड़ी। इस्मत ने अपने परिवेश को निर्भीकता से चित्रित किया है और आपनी बातों के पक्ष में वे डट कर खड़ी रहीं और परिस्थितियों को मुकाबला किया। उनके लिए लिखना और जीना एक था।

वे साफ़ तौर पर मानती थी कि जगबीती और आपबीती में भी तो बाल बराबर का फ़र्क है। जगबीती अगर अपने आप पर बीती महसूस नहीं की हो तो वह इनसान ही क्या? और बग़ैर परायी ज़िंदगी को अपनाए, कोई कैसे लिख सकता है!
उन्होंने अपनी कहानियों में खानदान के कुछ लोगों को पात्रों के रूप में चित्रित किया है लेकिन उन्हें पात्र की तरह बाक़ायदा रचा और गढ़ा है।
इस्मत की कहानियों के चलते उर्दू कहानी में दृष्टि और कला के स्तर में बदलाव आया और कुछ नये आयाम जुड़े। उनका रचना समय प्रगतिशील साहित्यांदोलन के पहले उभार का था। उन्होंने सामाजिक न्याय के संघर्ष में स्त्री की मुक्ति को महत्वपूर्ण माना और उनके अधिकारों की बात को प्रगतिशील रचनाशीलता का प्रमुख हिस्सा बनाया।
जिसके कारण वे यथार्थ के परिचित स्वरूप से बाहर निकल कर जीवन के सर्वथा नये इलाकों में कहानी को ले गयीं। मध्यवर्गीय मुस्लिम समाज के स्त्री के जीवन को कहानी की संवेदना बनाने के लिए इस्मत चुग़ताई अलग से पहचानी जाती हैं। और ये कहानियों संवेदना के स्तर से निकलकर  स्त्री के अस्तित्व व अस्मिता का व्यापक विमर्श में बन जाती हैं।
इस्मत ने निम्न मध्यवर्गीय तबक़े की दबी-कुचली सकुचाई मुस्लिम किशोरियों की मनोदशा को अपनी उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी यथार्थ व शिद्दत के साथ बयान किया है।  अश्लीलता के आरोप में उनकी मशहूर कहानी लिहाफ़ के लिए लाहौर हाईकोर्ट में मुक़दमा भी चला जो लेकिन ख़ारिज हो गया। उन्होंने शहीद लतीफ से शादी की जिनकी मदद से उन्होंने 12 फिल्मों की पटकथाएं लिखीं। उन्हें वर्ष फिल्म गर्म हवा के लिये सर्वश्रेष्ठ कहानी का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला। उन्होंने श्याम बेनेगल की फिल्म जुनून के भी संवाद लिखे। फिल्म जुगनू में एक रोल भी किया तथा कुल 13 फिल्मों से वे जुड़ी रहीं।
इस्मत के पास एक स्पष्ट वैचारिक परिप्रेक्ष्य है और वे स्त्री बनाम पुरुष के बदले अलग-अलग स्तरों स्त्री को लेकर पुरुष की मानसिकता और शोषण को उजागर किया है। स्त्री के प्रति स्त्री की क्रूरता भी उनसे नहीं छिपी है जो उन्हें नारीवादी लेखिका बनने की परिधि से बाहर ले जाता है। इस्मत की कहानियां अपने समय का समाजशास्त्रीय अध्ययन हैं।
उनकी कहानियों में अनावश्यक स्फीति नहीं है बल्कि लगातार एक बेचैन गति है।
और दुर्लभ कलात्मक संयम है।
उनकी कहानियों में एक बेचैन करने वाली गति है। इशारे, संवाद और चरित्र चित्रण और दृश्यों की बारीकी का हुनर उन्होंने पटकथा लेखन के दौरान मांजा। यहां कह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि पटकथा लेखन से वे जुड़ी न होतीं तो शायद वैसा निखार उनकी रचनाओं में न आ पाता। प्रेमचंद ने भी गोदान की रचना तब की थी जब वे बंबई फिल्म जगत से जुड़े और पटकथा की समझ विकसित की। इसने कौशल के चलते गोदान उनकी रचनाओं में सर्वोत्तम बन गया। पटकथा मनोवेग को भी चाक्षुस बनाकर दिखाने का हुनर है जो कम रचनाकारों को आता है।
इस्मत के स्त्री पुरुष चरित्रों में एक अजब की कशिश और ज़िद है तो आकर्षक बनाती है और उनके निजीपन की छाप उसमें दिखायी देती है। हालांकि उनका कैनवास काफी विस्तृत है।
अपने ही जीवन को मुख्य प्लाट बनाकर रचने का साहस उनकी रचनाशीलता को सहज विश्वसनीयता से लैस करता है।
70 साल पहले के पुरुष प्रधान समाज में एक स्त्री का स्वतंत्र सोच कितना जोखिमभरा रहा होगा सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। उनकी कहानियों के व्यंग्य, भाषागत प्रवाह, स्त्रियों का उनकी अपनी जुबान के साथ साहित्य में प्रवेश, निर्भीकता आदि विशेषताओं ने उन्हें उर्दू साहित्य में सआदत हसन मंटो, कृष्ण चंदर और राजेन्दर सिंह बेदी के खड़ा कर दिया। उनमें भी ज्यादातर अलोचक मंटो और चुगताई को ऊंचे स्थान पर रखते हैं।


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