2/05/2014

मेघदूत के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंचन की तैयारी में हैं मृत्युंजय


-डॉ.अभिज्ञात
कालिदास के मेघदूत के पुनर्सृजन में अरसे से जुटे हैं वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, लेखक व गायक मृत्युंजय। उन्होंने न सि$र्फ मेघदूत का अंग्रेज़ी और हिन्दी में पद्यानुवाद किया है, बल्कि  मेघदूत के सम्बंध में कालिदास की भाव व रचनाभूमि पर जाकर बहुत कुछ जोड़ा व फेरबदल भी किया है। कालिदास ने नायक यक्ष की स्थिति का वर्णन तृतीय पुरुष के तौर पर किया है जबकि मृत्युंजय जी ने उसे प्रथम पुरुष बना दिया है और नायक स्वयं अपनी व्यथा-कथा मेघ से कहता है। मृत्युंजय जी ने आज के समाज की मौजूदा समस्याओं और मुद्दों को इस कृति में स्थान देकर इसे प्रासंगिक बना दिया है। यही कारण है कि आलोचक मृत्युंजय के मेघदूत को पद्यानुवाद, भावानुवाद या गीतानुवाद से बढ़कर इस कृति को पुनर्सृजन करार देते हैं। पुस्तक के प्राक्कथन में संस्कृत में साहित्य लेखन के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त पद्मश्री व पद्मभूषण से सुशोभित सत्यव्रत शास्त्री ने लिखा है- 'यह एक पुन:-सृष्टि है, एक पुरातन कृति का नवीन अवतार।' जबकि मृत्युंजय जी बड़ी विनम्रता से यही कहते हैं कि मेघदूत के वे सारे भाव-गुण और तत्व इस कृति में समाहित हैं जो एक साधारण हिन्दी पाठक को मेघदूत की भाव-भव्यता और कालिदास की दक्ष काव्य-कलाकृति का आभास करा सकते हैं। यही मेरी रचना का साध्य भी है और यही मेरी साधना का प्राप्य भी। मेघदूत पर आधारित मृत्युंजय की अंग्रेजी कृति का प्रकाशन पहले ही ट्रैफोर्ड पब्लिशिंग, यूएसए ने 'मेघदूत: दि एमिसरी आफ संड्रेंस' नाम से किया था। अब उनकी हिन्दी कृति 'मेघदूत' नाम से राजकमल से प्रकाशित है। इस कृति का लोकार्पण 29 जनवरी 2014 को कोलकाता पुस्तक मेले में इंडोनेशियाई लेखिका आयु उतामी ने किया। आयु के बनाये आठ रंगीन चित्र भी इस पुस्तक में प्रकाशित हैं, जो यक्ष व यक्षिणी के भावों को अभिव्यक्ति देते हैं। प्रशासनिक जगत, संगीत व साहित्य से जुड़े उनके तमाम मित्रों व प्रशंसकों से खचाखच भरे प्रेस कार्नर में इस समारोह में मेघदूत के  हिन्दी छंदों का गायन कर उन्होंने एक अविस्मरणीय समारोह बना डाला। प्रबुद्ध बनर्जी ने इन छंदों को संगीतबद्ध किया है।  
साहित्य, संगीत और इतिहास में गहरी रुचि, भोजपुरी, हिन्दी, अंग्रेजी, नेपाली, बांग्ला और भाषा-इंडोनेशिया भाषाओं की गहन जानकारी रखने के कारण मृत्युंजय ने इस कृति की बहुआयामी संभावनाओं का अधिकाधिक विस्तार देने में समर्थ हुए हैं। वे कालिदास के विजन की ऊंचाइयों को आज के प्रसंग में छूते हैं, वहां से नया प्रस्थान करते हैं। प्रशासनिक सेवा में प्रेसीडेंट आफ इंडिया मेडल एवं क्षेत्रिय संगीत में श्रेष्ठता के लिए कलाकार अवार्ड से सम्मानित मृत्युंजय जी का मेघदूत से सिर्फ अनुवाद का नाता नहीं है। वे उसे गीति नृत्य नाट्य की ऐसी ऊंचाई तक ले जाना चाहते हैं, जहां पूरी दुनिया मेघदूत की रचनात्मक श्रेष्ठता से नये ढंग से परिचित हो सके और इस पुरातन कृति की प्रासंगिकता को पहचान सके। वह पीढ़ी भी कालिदास को जाने, जिसकी दृष्टि महान रचनात्मक परम्परा से हट गयी है। वे इस कृति के गीति नाट्य के मंचन की तैयारी में हैं। इस सम्बंध में दो बैठकें हो चुकी हैं। पहले मंचन कोलकाता में होगा। मेघदूत में हिन्दी में लिखे गये छंद भारत के ïिïवभिन्न प्रांतों की लोकधुनों व शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं जिसमें विभिन्न भाषाओं के कलाकार जुड़ेंगे। गायन में बालीवुड से भी एक दो नाम रहेंगे तथा गायन में 30-40 लोग और होंगे। संगीत के अरेंजमेंट में दुनिया भर के बहुत से कलाकार जुड़ेंगे। इस कृति का मंचन दुनिया के विभिन्न देशों में करने की योजना है। पहले भी उन्होंने नृत्य नाट्य लिखे हैं। इस दिशा में वे इंडोनेशिया में देखे गये मंचनों के प्रभाव को स्वीकार करते हैं। इंडोनेशिया में छाया नाटक, नाटक, नृत्य नाटक के कई रूप देखने को मिले थे, जो बेहद सशक्त हैं। उन्होंने रवीन्द्रनाथ के जन्मोत्सव की 150 वीं वर्षगांठ  पर 'सागरिका' कविता का नाट्य रूपांतर किया का, जिस पर म्यूजिकल डांस ड्रामा हुआ। उसके पहले उन्होंने महाभारत के पात्र शिखंडी को लेकर डांस ड्रामा की स्क्रिप्ट तैयार की थी, जिसका मंचन हुआ था। वे कहते हैं हमारा उद्देश्य नयी पीढ़ी और आधुनिक युग के लोगों को संस्कृत कवि कालिदास की काव्य दक्षता, सौंदर्य, शृंगार, वियोग से परिचित करना है, जो तारीफ के काबिल है। केवल यह जानना महत्वपूर्ण नहीं है कि जायसी बड़े कवि थे या तुलसीदास को सम्मान लोग देते आये हैं इसलिए दिया जाये। अगर रूपांतर के जरिये लोगों को महान कवियों की क्लासिक रचनाओं के बिम्बों के साथ जोड़ते हुए उनकी रचना के उदात्त भाव भूमि तक लाया जाये तो यह बड़ा काम होगा। उन्होंने थिएटर जगत की सुपरिचित हस्ती रमनजीत कौर के साथ काम शुरू कर दिया है। व दक्ष नृत्यांगना भी हैं। नाटक व नृत्य से बराबर जुड़ा हुआ व्यक्ति ही इसके निर्देशन में न्याय कर पायेगा। परिकल्पना राष्ट्रीय नहीं अंतरराष्ट्रीय है। निर्देशन में डांस और ड्रामा दोनों को साधने की चुनौती होगी। छाऊ जैसे डांस फार्म की जरूरत पड़ेगी। मुख्य तौर पर ओडिशी होगा किन्तु भरत नाट्यम का भी कुछ स्थलों पर प्रयोग होगा।-

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