2/11/2015

शलभ श्रीराम सिंह के पत्र अभिज्ञात के नाम

लेखकों के नाम पत्र
(पत्र का स्केन जल्द ही इस पोस्ट के साथ होगा) 
(पत्र-1)
जैसा कि आप जानतें हैं कि तीनों लेख, कलकत्ता में रहते हुए मैंने आप द्वारा प्रेरित होकर ही लिखे हैं, इसलिए उन पर आपका भी उतना ही अधिकार है जितना मेरा या कल्याणी या सकलदीप सिंह, कालिका प्रसाद और एकांत श्रीवास्तव का। बावजूद इसके उनको लेकर की गई मेहनत के मद्देनजर क्या उनका व्यवस्थित ढंग से प्रकाशन समीचीन नहीं है? वे शीघ्र ही छपेंगे।
एक बात मुझे आपसे खासतौर पर कहनी है वह यह कि प्रकाशन को लेकर उतावलेपन का परिचय न दें। अभी तो आपके पहले संग्रह पर ही कायदे से बात नहीं हो पाई है। स्वास्थ्य पहले से बेहतर है। डॉ विजय बहादुर सिंह की देखरेख में मैं अपने ढंग से जी और लिख रहा हूं। कुछ और कविताएं लिखी गई हैं। कल्याणी जी दूरदर्शन पर आपसे मिलीं अच्छा लगा जानकर। आज बाबा (नागार्जुन) भी पहुंच गए हैं।
3.3.1991
विजय निवास
48, स्वर्णकार कॉलोनी मार्ग, विदिशा, म.प्र. 464001

(पत्र-2)
तुम्हारी चुप्पी का रहस्य समझ में नहीं आ रहा है। तुम स्वस्थ सानंद होगे।
तुम्हारी काफी पहले भेजी गई कविताओं को उपयोग में लाने का समय आ गया है। उत्तर संवाद निकाल रहा हूं। और हां। समकालीन परिदृश्य की पडताल करते हुए जरूरी हो तो बंगाली कविता को सामने रखकर एक लम्बा लेख (सतर्क भाव से विश्लेषणपरक) लिखकर भेज सकोगे तो मुझे अच्छा लगेगा।
14.2. 1993
रामकृष्ण ग्रंथालय
सावित्री सदन, तिलक चौक, विदिशा, म.प्र. 464001