बहुचर्चित व्यंग्य कविता
-डॉ.अभिज्ञात
देश
के प्रगतिशील स्मग्लरों ने
बनायी
अपनी अकादमी
पूरे
लेखे जोखे के बाद तय हुआ
इस
वर्ष हुई है अच्छी आमदनी
वे
पल पल प्रगति की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं
पूरे
आत्मविश्वास से देश से गद्दारी की ओर बढ़ रहे हैं
यह
गद्दारी एक दिन जरूर रंग लायेगी
पूरा
का पूरा लोकतंत्र हथियायेगी
तय
हुआ इस वर्ष देश के सबसे बड़े गद्दार को
एक
पुरस्कार दिया जायेगा
इस
प्रकार देश से गद्दारी करने वालों को प्रोत्साहित किया जायेगा
यह
सूचना प्रसारित की गयी कि
हमसे
मिलने अवश्य आइये
आपने
राष्ट्र के साथ सबसे बड़ी गद्दारी की है
प्रमाणित
किजिये दस करोड़ रुपये का पुरस्कार पाइये
निर्धारित
तिथि पर चुनिन्दा पांच प्रतियोगी ही आये
पहले
के देख निर्णायक मुस्कुराये
पहले
प्रत्याशी शिक्षक हैं
प्राइमरी
में पढ़ाते हैं
इनका
दावा है हराम की कमाई खाते हैं
कक्षा
में अक्सर सोते हैं
और
उनकी इस आदत पर विद्यार्थी बहुत खुश होते हैं
बाद
में सारी जिन्दगी रोते हैं।
इन्होने
देश की नींव को कमजोर कर दिया है
देश
की नयी पीढ़ी को कामचोर कर दिया है
ये
जो निकम्मी नौजवानी है
आप ही की मेहरबानी है
आपका
ही किया जाये आदर सत्कार
आप
ही हैं इस देश के सबसे बड़े गद्दार
निर्णायक
बोले-“अबे मास्टर हमें उल्लू बनाता है
देश
की युवा पीढ़ी को निकम्मी बताता है
तो
क्या हड़ताल और दंगे तुम्हारी मां करती है
और
लड़कियों को छेड़ने तुम्हारा बाप जाता है
ये
सब काम काम नहीं है
अरे
किसी को निकम्मा बनाना इतना आसान नहीं है
ये
लो सौ का नोट
जाकर
पान वाले की उधारी चुकाओ
और
देश से गद्दारी करने की कोई अच्छी स्कीम बनाओ’
अब
बोले दूसरे भाई
ठीक
करते हुए अपनी टाई
-“सर मैं एक पुलिस अधिकारी हूं
अपनी
राष्ट्रीय व्यवस्था को बेचने वाला
एक
छोटा सा व्यापारी हूं
आप
लोगों के बहुत काम आता हूं
सरकार
की तनख्वाह से तो नाश्ता भी नहीं होता
आपका
ही दिया खाता हूं
हमसे
ही पनप रहा है हर ओर भ्रष्टाचार
हमारे
ही बलबूते कायम है
भोली
और निरीह जनता पर अत्याचार
और
कभी कभी तो थाने तक में बलात्कार
लोग
हमें अपना रक्षक मानते हैं
मगर
हम क्या हैं आप स्वयं जानते हैं
क्या
मुझे नहीं है अधिकार
कहलाने
का सबसे बड़ा गद्दार”
निणार्यक
बोले-“बंधु
तुम्हारी
हर बात सही है
मगर
तुम्हारी किस्मत में गद्दारी नहीं है
तुम
और तुम्हारे पुलिसवाले भाई
जिसका
ऊपर या नीचे से खाते हैं उसकी का गुण गाते हैं
अरे
यह कौम कुत्तों में गिनी जाती है
ये
गद्दारों की श्रेणी में नहीं आते हैं
जाओ
किसी के तलवे चाटो
और
बची खुची जिन्दगी यूं ही काटो”
नम्बर
तीन ने कहा-“मान्यवर
मैं
एक कवि हूं, कविताएं
लिखता हूं
और
साहित्यिक क्षेत्र में
सबसे
अधिक बिकता हूं
मेरा
इतिहास गवाह है
मेरी
लेखनी का अन्दाज आम नहीं खास रहा है
जितने
भी लोग सत्ता में आये
सबका
मुझमें ही विश्वास रहा है
सत्ताधारी
की प्रशंसा में लिखता हूं
ऊंचे
दामों पर बिकता हूं
जब
देश में हो रहा होता है अत्याचार
मेरी
लेखनी का विषय होता है- प्यार
जब
जनता रोती है
मेरी
लेखनी हास्य रचनाओं में खोती है
जब
देश में दंगे होते हैं
मैं
मुहब्बत के गीत गढ़ता हूं
और
इस प्रकार गद्दारी की एक एक सीढ़ियां चढ़ता हूं
मैंने
कभी नहीं सुनी आम जनता की आवाज
और
अपनी इस परम्परा पर है मुझको नाज
लोग
चुल्लू भर पानी के लिए प्यासे तरसते हैं
मेरी
रचनाओं में सावन बरसते हैं
मैंने
देश, जनता और साहित्य, तीनों के साथ धोखा किया है
मेरे
वास्ते भी कुछ किया जाये
महोदय
यह सबसे बड़े गद्दार का पुरस्कार मुझे ही दिया जाये”
निर्णायक
झल्लाए-“ज्यादा मत हांको
अपने
मुखौटे को हटाओ और गिरेबाने में झांको
मुझे
मालूम है तुम्हारी हर बात
तुम्हारी
है क्या औकात
तुम्हारी
दो बहनें और तीन बच्चे हैं
फिलहाल
सकुशल और अच्छे हैं
अब
तक वे सब फुटपाथ पर आ गये होते
अगर
तुम गलती से भी क्रांति के गीत गा गये होते
तुम
ग्रेज्युएट होकर भी दस वर्षों से बेकार हो
अब
तो बस एक बांचा हुआ अखबार हो
सत्ता
की चमचागिरी नहीं करोगे तो क्या करोगे
आलोचना
करके बेमौत मरोगे
जनता
की आवाज उठाकर तुम क्या पाते
अधिक
से अधिक अपने कफन का चन्दा जुटाते
पत्नी
किसी बीमारी से बिना इलाज के मर जाती
और
बहनें कोई चकलाघर सजाती
बच्चे
कटोरा लेकर भीख मांगते
और
अपने बाप के इन्कलाब की कीमत इस तरह चुकाते
मेरे
भाई तुम्हें भ्रम है कि गद्दार हो
तुम
नाइनटी फाइव परसेंट
लाचार हो
अपना
रास्ता नापो
गद्दारी
की डींग ना हांको”
नम्बर
चार थे एक स्वामी
मिस्टर
अंतरयामी
बोले-“बच्चा मुझे सभी जानते हैं
मेरे
ज्ञान का लोहा मानते हैं
मैं
धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाता था
इस
प्रकार धर्मिक भावना बढ़ाता था
मेरी
आत्मा इस पाप के लिए धिक्कार रही है
अरे
मुझसे बढ़कर कोई भी गद्दार नहीं है
अब
मेरा अन्त निकट है मैं जल्दी ही मरूंगा
तुम
सबसे बड़े गद्दार का पुरस्कार मुझे दे दे
इससे
कुछ जनसेवा करूंगा”
निर्णायक
बोले-“गुरु तुम्हारी दाल यहां नहीं गलेगी
दुनिया
को भले उल्लू बनाओ पर यहां नहीं चलेगी
मैं
यह मान सकता हूं तुम मक्कार हो
पर
यह ठीक नहीं कि गद्दार हो
समझदार
व्यक्ति कहीं मजहब के नाम पर कत्लेआम करता है
गीता
व कुरान का बंदा क्या मनुष्यता को नीलाम करता है
चाहिए
तो सौ पचास ले ले और जाओ
कहीं
नदी तीरे गांजे का दम लगाओ
बहुत
बड़ी तुम्हारी औकात नहीं है
अरे
गद्दार होना तुम्हारे बस की बात नहीं है”
अन्तिम
थे शायद एक सेठ
लिए
ढाई मन वेट
मुस्कुरा
रहे थे
जैसे
तैसे उठकर अपना परिचय स्वयं करा रहे थे
-“बंधु मैं एक कुशल अभिनेता हूं
जी
हां एक शुद्ध भारतीय नेता हूं”
अभी
इतना ही कहना था कि निर्णायक का चेहरा खिल गया
उसे
जिसकी खोज थी वह मिल गया
उठकर
तपाक से हाथ मिलाया
गदगद
हृदय से गले लगाया
बोले-“हुजूर माफ कीजिए पहचान नहीं पाये
आप
एक नेता हैं जान नहीं पाये
भला
आपकी बराबरी में कौन आयेगा
आपको
होते यह पुरस्कार और कौन ले जायेगा
आप
पर तो हमें सचमुच ही अभिमान है
अरे
आप ही तो हम गद्दारों की जान हैं
आप
में गद्दारी के सभी गुण मौजूद हैं
आपसे
भला कौन टक्कर लेता है
अरे
यह भारत है और इस भारत में
सबसे
बड़ा गद्दार कोई है तो वह नेता है।“
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