बहुचर्चित व्यंग्य कविता
-डॉ.अभिज्ञात
ड्राइंग
के टीचर
मिस्टर
केवलदास फटीचर एक कवि हैं।
साहित्य
के क्षितिज पर उभरते हुए रवि हैं।
इश्क
मुहब्बत पर लिखते हैं
उल्टा
सीधा बकते हैं।
दिन
भर लड़कियों को लाइन मारते हैं रात भर जगते हैं।
कक्षा
में नींद सता रही थी।
सपने
में मल्लिका शेरावत आ रही थी।
ड्यूटी
से उबे हुए स्वर में।
नींद
से ऊबे हुए स्वर में।
छात्रों
को आदेश दिया
-“अपनी मनपसंद कोई हसीन चित्र बनाओ।
पूछने
पर थोड़ी व्याख्या के साथ
चित्र
के भाव समझाओ।“
फिर
वे कुर्सी पर सो गये।
रंगीन
सपनों में खो गये।
कुछ
देर बाद छात्रों के शोर से ।
नींद
हुई डिस्टर्ब चिल्लाए जोर से।
अनुशासन
पर लेक्चर झाड़ा।
कुछ
सीधेसादे छात्रों को जम के लताड़ा ।
फिर
आयी कापी जांचने की बारी।
देखनी
चाही छात्रों की कारगुजारी।
पहले
छात्र व गुरुवर
दोनों
की थी एक ही राशि।
अतः
जम के मिली शाबाशी।
जिसे
देख आ जाये अच्छे अच्छों को पसीना।
कापी
पर बनी थी एक फिल्मी हसीना।
चित्र
के भाव पर गुरु ऐसे बह गये।
कि
छात्र चुप रहा व्याख्या स्वयं कह गये।
अब
था दूसरे छात्र का चांस ।
वह
भी था काफी एडवांस।
छात्र
के चेहरे पर मुस्कुराहट सनी थी।
जी
हां, कापी
पर एक कुर्सी बनी थी।
समझदार
गुरु चेले का दृष्टिकोण पहचान गये।
कुर्सी
काफी हसीन है बिना तर्क के ही मान गये।
अब
लो तीसरे की बात।
गुरु
उससे भी खा गये मात।
कापी
पर पेंसिल से बने गोले को
छात्र
रोटी का चित्र कह रहा था ।
और
अपने आप को गरीबों का मित्र कह रहा था।
यह
बात थी काफी संगीन।
मान
ही लेना पड़ा रोटी है हसीन।
अब
था नम्बर चार।
अव्वल
दर्जे का होशियार।
उसकी
कापी पर कुछ भी नहीं बना था।
फिर
भी वह गुरु के आगे निर्भीक तना था।
उसने
जो दी सफाई ।
सबकी
बुद्धि चकरायी।
उसने
कहा-“मैंने कापी पर
भारतीय
आजादी की तस्वीर बनायी है।
किन्तु
नजर आयेगी कैसे
क्या
देश में कहीं नजर आयी है।
यह
चित्र बेहतरीन है।
आजादी
बहुत हसीन है।।“
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