9/30/2017

बड़ी लड़ाइयां

कहानी

-डॉ.अभिज्ञात


पेंटिंग -साभार
Alessandro Piras
संदीप टेबल टेनिस खेलने पहुंचा तो उसकी खुशी का पारावार नहीं था। मैच में कैश प्राइज अच्छा खासा था। वह यदि जीत जाता है तो उससे आराम से अपना और अपने छोटे भाई की साल भर की फीस दे पायेगा फिर भी कुछ न कुछ बच ही जायेगा।

और रहा सवाल जीत का तो वह पक्की ही मानकर चल रहा था। उसके सामने वे टिकेंगे कैसे। जिस क्लब में वह खेलता था अच्छा खेलने के लिए लगातार प्रताड़ित होता रहा है। हमेशा कोशिश की है कि वह जीत न जाये। अपनी जीत से ध्यान हटाने के लिए वह फिप्टीन लव से गेम शुरू करता था। अर्थात उसे जीत के लिए 21 प्वाइंट लेने होते जबकि सामने वाला 6 प्वाइंट में ही जीत सकता था। लेकिन वह नौबत ही बड़ी मुश्किल से ही आयी होगी। हालांकि वह जानबूझ कर कई बार ग़लत शॉट मार देता देता ताकि सामने वाले का स्कोर ठीक रहे और उसे खेल में मज़ा आये। क्योंकि उसके खेल से आक्रांत होकर कोई उससे खेलना ही नहीं चाहता था। दूसरे यह कि क्लब के इंचार्ज उसके पीछे हाथ धोकर पड़े रहते थे क्योंकि वह तीन गेम में तीन-चार मिल्टन के बॉल तोड़ ही चुका होता था। जबकि बॉल की क़ीमत के बराबर ही पूरे महीने की फ़ीस थी। उसके खेलने पर बॉल टूटने की वज़ह से रोक लगा दी गयी तो उसने यह शर्त मान ली कि वह अपनी बॉल से खेलेगा ताकि टूटे तो क्लब का कोई नुकसान न हो। उसके पिता बहुत मामूली नौकरी करते थे और अपने दोनों बेटों की पढ़ाई लिखायी और कपड़े लत्ते का ख़र्च वहन करने में ही तमाम दुश्वारियां पेश आती थीं, ऐसे में उसके टेबल टेनिस के जुनून के लिए वे बड़ी मुश्क़िल से पैसे जुटाते। वह बॉल को तेज़ शॉट मारने से पहले सोचता कि कहीं फूट न जाये फिर भी वह खेल की उत्तेजना में अक्सर यह भूल जाता। जब बॉट टूटती तो वह रुआंसा हो जाता। वह नौ में पढ़ रहा था किन्तु उसे पसंद नहीं था कि वह ब्वायज केटेगरी में खेले। वह मैच में बड़ों से भिड़ना चाहता था मगर उसे अलाव नहीं किया जाता था। उसकी महीनों से तमन्ना थी कि कोई ऐसा मैच हाथ लगे जिसकी रक़म जीत कर वह बॉल का ख़र्च वहन कर ले बेफ़िक्र होकर तेज़ शॉट मारे। ऐसा कि हर शॉट पर बॉल टूट पड़े। एक अच्छी रैकेट ख़रीदने का भी सपना उसने पाला था। वह भी याद करे कि किससे पाला पड़ा है बच्चू का। वह सपने में ऐसा कर चुका था कि वास्तविक जीवन में बॉल पर अपना ज़ोरदार शॉट लगाने को तरसा करता था। उसे स्पिन पसंद नहीं थी। उसे कई लोगों ने सलाह दी थी कि वह स्पिनर क्यों नहीं बन जाता, इससे बॉल कम टूटेगी किन्तु उसे इसमें एकदम मज़ा नहीं आता था और उसने कई स्पिन गेंदों पर भी तेज़ शॉट मारकर उसकी ऐंठन दूर कर दी थी।
तो यह मैच दूसरे शहर में था। दो घंटे की बस यात्रा कर वह टूर्नामेंट स्थल पर पहुंचा था। अकेले। यह अकेले की उसकी पहली यात्रा थी। पहले तो उसे मैच में भाग लेने की घर से इज़ाज़त ही नहीं मिल रही थी। मां ने हाथ तंग होने की बात कहकर साफ़ इनकार कर दिया था किन्तु उसकी रुआंसी शक्ल पर बाबूजी को तरस आ गया था। उन्होंने कहा था-ठीक है चले जाओ किन्तु अकेले जाना होता। कोई और साथ जायेगा तो बस का ख़र्च बैठेगा।
वह अकेले दूसरे शहर जाने का साहस दिखाने को तैयार हो गया। बाबूजी ने कहा-तुम सुबह की पहली बस से निकल जाओ। मैं अपनी ड्यूटी से नागा नहीं कर सकता वरना अतिरिक्त ख़र्च तो लगेगा ही वेतन भी कट जायेगा। मैं रात में तुम्हें वापस लेने ज़रूर आ जाऊंगा। ड्यूटी से छूटते ही बस पकड़ लूंगा। मेरे पहुंचने तक तुम टूर्नामेंट स्थल न छो़ड़ना।
संदीप टूर्नामेंट स्थल पर पहुंचा। दूरदराज़ से आये खिलाड़ी पहुंच चुके थे। स्थानीय खिलाड़ी समय पर पहुंचने वाले थे। समय काटने का सबको सबसे अच्छा तरीक़ा यह लग रहा था कि थोड़ा वार्मअप कर लिया जाये खेलकर। सुखद यह था कि यहां ब्वायज़ की कोई अलग से केटेगरी नहीं थी। ओपन टूर्नामेंट था। कैस प्राइज़ सुनकर उसकी आंखों की चमक बढ़ गयी थी। वहां मौज़ूद सभी खिलाड़ियों की उम्र उससे अधिक थी। आयोजकों ने भी उसका नाम एंट्री करते समय उसे साफ़ बता दिया गया था कि टूर्नामेंट ब्वायज़ का नहीं है। सो उसे जनरल केटेगरी में ही खेलना होगा। जिस खिलाड़ी के साथ वह वार्मअप के लिए खेल रहा था वह बीए सेंकेंड ईयर का छात्र था और भी जिले के सबसे नामी स्कूल का। संदीप नर्वस नहीं हुआ क्योंकि उसने ऐसे करारे शॉट लगाये कि वह दो गेम क्रमशः थ्री और फ़ोर पर हार गया। चूंकि वह दो गेम लगातार हार गया था इसलिए तीसरे की नौबत ही नहीं आयी थी। जो खिलाड़ी और वालेंटियर वहां थे वे उसका खेल देखकर दंग थे और सब उसके बारे में पूछने लगे और प्यार से बात करने लगे तभी वह अचम्भित हो गया जब उसने पाया कि उसके बाबूजी और भाई मुदित वहां पहुंच आये हैं।
बाबूजी ने आते ही आयोजकों से पता कर लिया कि खेल शुरू होने में अभी कुछ विलम्ब है। वे उसे अपने साथ ले गये पास ही के एक होटल में। उन्होंने बताया कि संदीप के बस पकड़ते ही उन्हें लगा कि उन्होंने ग़लती की है। उसकी मां ने भी उलाहने दिये कि छोटे से बच्चे को अकेले दूसरे शहर भेज कर अच्छा नहीं किया तो उन्होंने ड़यूटी जाने का इरादा छोड़ दिया और उसके पास आने के लिए तैयार हो रही रहे थे कि मुदित ने भी साथ चलने की ज़िद पकड़ ली कि वह भी स्कूल नहीं जायेगा, भैया को जिताने के लिए चीयर्स करेगा। जब होटल में उन्हें पता चला कि भरपेट खाने वाला भोजनालय है। कम खाओ या ज़्यादा पैसा एक ही लगेगा। पिता ने कहा कि चूंकि आना आनन- फानन में बिना किसी योजना के हुआ है इसलिए कोई भी घर से खाकर नहीं आया है और सभी लोग ठीक से खा लें ताकि शाम को फिर भूख न लग जाये वरना और ख़र्च बैठेगा.. अब रात में घर लौटकर ही खाना है।
भोजन लज़ीज था कढ़ी का स्वाद  ज़बरदस्त। दोनों भाइयों ने अधिक खाने की प्रतियोगिता कर ली। संदीप सोलह रोटियां खा गया और मुदित सात। भात खाने की पेट में ज़गह नहीं रह गयी थी। किसी तरह पापड़ खाकर समापन किया। भोजन से पूरी तरह से तृप्त होकर वे टूर्नामेंट स्थल पर जल्दी जल्दी लौटे। मुदित को खाने के फेर में उन्हें याद ही नहीं रहा कि वह मैच खेलने आया है। खिलाड़ियों की जो लिस्ट निकली थी उसमें दूसरे नम्बर का मैच संदीप का था। पहला चल रहा था एक गेम हो गया था। तीन गेम का मैच था यदि कोई लगातार दो जीत गया तो दो पर ही ख़त्म हो जाना था वरना तीन होता। और दोनों खिलाड़ियों के एक-एक जीतने की वज़ह से तीसरा गेम भी हुआ। दोनों खिलाड़ियों में उन्नीस -बीस का ही फ़र्क था। संदीप को अधिक खाने की वजह से सुस्ती आने लगी थी और नींद भी। वैसे ही वह रोज़ की तुलना में आज जल्दी उठा था ताकि पहली बस पकड़ सके। दोनों टक्कर के खिलाड़ी थे मगर दोनों का खेल संदीप को बचकाना लगा। न शॉट में ज़ोर था और न स्पिन की कोई लियाक़त। यदि ये उसके साथ खेलने उतरे होते तो वह लव पर उन्हें हराता.. कैसे कैसे लोग टूर्नामेंट में चले आते हैं..उसने सोचा तब तक उसका नाम पुकारा गया। वह टेबल टेनिस कोर्ट में खड़ा हुआ तो विपक्षी खिलाड़ी को देखकर उसे अपार प्रसन्नता हुई। यह वही बीए पार्ट टू का खिलाड़ी था जिसे उसने थोड़ी देर पहले बुरी तरह हराया था। संदीप को देख उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। वह बिना खेले ही जैसे हार गया हो। टॉस जीतने के बाद उसके विपक्षी ने जैसे ही सर्विस की संदीप बौखला गया..यह क्या उसका पूरा शरीर ही बोझिल हो गया था और उसने जैसे हिलने से ही इनकार कर दिया हो। वह ऊंचे बॉल पर भी शॉट नहीं मार पा रहा था। जबकि आज वह जमकर शाट मार बाल तोड़ सकता था ! उसकी फूर्ति हवा हो गयी थी। पहला गेम उसने सेवन पर गंवा दिया। मुदित ने उसे दो एक बार मरी- मरी आवाज़ में चीयर्स कर हौसला बढ़ाने का प्रयास किया था किन्तु उसे बुरी तरह हारते देख उसने चुप्पी साध ली। पहला गेम हारने के बाद उसने बाबूजी और मुदित की तरफ़ देखा तक नहीं। ऐसा ख़राब खेल उसने आज तक नहीं खेला था। दूसरा गेम तो आलस्य और पिछला गेम  हारने की हताशा और बाबूजी तथा मुदित की उम्मीदों पर खरा न उतर पाने की हताशा के कारण और बुरी तरह हार गया। उसकी हालत देखकर उसके विपक्षी ने कहा-अरे यार तुम तो अच्छे प्लेयर हो, इतना नर्वस क्यों हो गये। मुझे तुमसे सीखना है, क्या करारे शॉट लगाते हो। फिर कभी मिलते हैं। मुझे कुछ टिप्स देना।
लौटते समय उन्होंने आपस में कोई बात नहीं की। जैसे किसी आत्मीय की मैयत से लौटे हों। संदीप इसके बाद कई दिनों तक टेबल टेनिस की प्रैक्टिस पर नहीं गया।
बाबूजी कई दिन तक उससे कतराते रहे क्‍योंकि भरपेट भोजन का टुच्चा सा सुझाव उनका ही था, जो हार का कारण बना। ग़रीब बड़ी-बड़ी लड़ाइयां अक्सर छोटे-छोटे कारणों से हार जाता है।

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