6/17/2012

हंस में अभिज्ञात की दो कविताएं


हंस के जून 2012 में ये दो कविताएं प्रकाशित हैं। फिलहाल देश भर से मोबाइल पर व्यापक तौर पर सुखद प्रतिक्रियाएं मिली हैं। ये कविताएं आपसे शेयर कर रहा हूं।


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तोड़ने की शक्ति

जाने क्यों अच्छी लगती हैं टूटने की आवाज़ें
जबकि बार-बार मुझे इनकार है ऐसी आवाज़ों को सुनने से


क्या हममें बसी है कोई पुरातन धुन
जिसकी लय देती है हमारी धमनियों को नयी गति
और दिमाग़ को एक अज़ब सा सुकून


क्योंकि आख़िरकार वही और वही है हमारी नियति


हालांकि यह भी सच है कि हर समय हर घड़ी
नहीं होता शुभ
किसी वस्तु का टूटने से रह जाना


यह टूटना ही वह सत्य है जिससे हमें होते जाना होता है
परिचित


न चाहते हुए भी
टूटने की क्रिया की स्वाभाविकता से हमें होना होता है बार-बार
दो चार
दरअसल अपने अंदर टूटने की विवशता ही
हमें खुद करती है प्रेरित कुछ न कुछ तोड़ने को
यदि नहीं कर पाते हम वैसा
तो हो जाते हैं किसी टूटने की खुशी में शरीक


टूटते जाना एक उत्सव है
टूटना है एक संगीत
अर्थ का अंतिम बिन्दु
अनर्थ का चरम
दरअसल हमारा होना
टूटते जाने की एक क्रिया है


इस क्रिया में हमारा दिल बहलाव है कुछ न कुछ तोड़ते रहना
हम एक सच को खेल में तब्दील करते रहते हैं


जो अपने टूटने से जितना खाता है खौफ़
तोड़ता है उतनी ही चीज़ें
वह उस बेचैनी को अभिव्यक्ति देता है जो है
उसके भीतर
हालांकि जब-जब वह खुश होता है अपनी किसी सफलता पर
वह नापता है अपनी ऊंचाई
तोड़ने का शक्ति परीक्षण कर
वह इस बात को अनचाहे ही स्वीकार करता है
कि तोड़ने की शक्ति ही उसकी कुल उपलब्धि है


जो विस्तार है
उसके भय का।


सूर्य की सिंचाई

जब सुबह वे कर रहे होते हैं मार्निंग वॉक
देखते हैं
जल रही होती हैं कई लोगों के घर के सामने बत्तियां
जिनका स्विच बुझा देते हैं बूढ़ों की एक टोली के कुछ बुजुर्ग
कोसते हैं उनकी लापरवाही को
कि रात में वे लाइट जलाना नहीं भूलते
लेकिन सुबह बत्ती बुझाना
भूल जाते हैं


उन्हें याद नहीं रहता कि इतना तड़के तो नहीं टूट जाती सबकी नींद


सभी सोने वाले
नहीं करते सुबह का इन्तज़ार
जैसा वे करते हैं बेताबी से
कि सुबह हो और वे जायें टहलने उन लोगों के साथ
जो उनसे भी ज़्यादा बेकरारी से करते हैं इन्तज़ार सुबह का


क्योंकि उनके पास किसी और चीज़ का इन्तज़ार बचा नहीं होता


और दरअसल वे जिसका करते रहते हैं इन्तज़ार
उसके ख़याल से ही उड़ी रहती हैं उनकी नींद
और जिसे वे छिपाते हैं सबसे


सबको
हां, सबको पता होता है कि वे कहीं जाने के लिए प्रतीक्षारत हैं
और किसी भी क्षण उनका आ सकता है बुलावा
उनके बुलावे की
उनसे अधिक उनके क़रीबी लोगों को रहती है प्रतीक्षा
वे काफी अरसे तक अपने घर में ऐसे रहते हैं जैसे रह रहे हों प्रतीक्षालय में
मार्किंग वॉक करते समय मौसम की चर्चा करना वे नहीं भूलते
दूसरी सारी चर्चाओं से बचने के लिए
लौटते समय देखतें हैं कुछ लोगों को लोटे से सूर्य को जल चढ़ाते हुए
और कहते हैं
इसीलिए, हां इसीलिए नमी रहती है प्रातःकाल फिज़ा में
रोज़ कहीं न कहीं, कोई न कोई
कर रहा होता है सूर्य की सिंचाई।

1 टिप्पणी:

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

sir, donon kaviyaten bahut hi achchhi hai.... bhadai ho.