कोलकाता : 'कोई भी कवि जीवन के विविध पहलुओं का न सिर्फ अध्ययन करता है, बल्कि परानुभूति को स्वानुभूति के स्तर तक ले जाकर उसकी अभिव्यक्ति करता है। इसलिए कविता महान होती है और जीवन का नवनीत उसमें होता है। भले वह साहित्य की अन्य विधाओं की तरह बिकाऊ न हो लेकिन कविता का बचे रहना मनुष्यता के हित में है।' यह कहना था भारतीय भाषा परिषद के मंत्री नंदलाल शाह का। वे बुधवार की शाम भारतीय भाषा परिषद की ओर से उसके सभाकक्ष में आयोजित कवि गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में शैलेन्द्र, डॉ.अभिज्ञात, नील कमल, डॉ.ऋषिकेश राय, कुमार विश्वबंधु, जितेन्द्र जीतांशु, राज्यवद्ध्र्रन, नंदकिशोर एवं जीवन सिंह ने अपने काव्यपाठ से रसिक श्रोताओं का मन मोह लिया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए 'वागर्थ' के सम्पादक एकांत श्रीवास्तव ने कहा कि आठवें दशक के बाद की कविता पर आरोप लगाये जाते रहे हैं कि वह एकरूपता की शिकार है, इस धारणा को यह कार्यक्रम खारिज करता है क्योंकि विभिन्न कवियों ने समाज व जीवन के विविध पहलुओं को उजागर किया है। उनमें न तो दोहराव है और ना ही एकरूपता है।
पुस्तकों का प्रकाशन विवरण
- लेखकों के पत्र
- कहानी
- तीसरी बीवी
- कला बाज़ार
- दी हुई नींद
- वह हथेली
- अनचाहे दरवाज़े पर
- आवारा हवाओं के ख़िलाफ चुपचाप
- सरापता हूं
- भग्न नीड़ के आर पार
- एक अदहन हमारे अन्दर
- खुशी ठहरती है कितनी देर
- मनुष्य और मत्स्यकन्या
- बीसवीं सदी की आख़िरी दहाई
- कुछ दुःख, कुछ चुप्पियां
- टिप टिप बरसा पानी
- मुझे विपुला नहीं बनना
- ज़रा सा नास्टेल्जिया
- कालजयी कहानियांः ममता कालिया
- कालजयी कहानियांः मृदुला गर्ग
2/27/2013
कविता का बचे रहना मनुष्यता के हित में-शाह
कोलकाता : 'कोई भी कवि जीवन के विविध पहलुओं का न सिर्फ अध्ययन करता है, बल्कि परानुभूति को स्वानुभूति के स्तर तक ले जाकर उसकी अभिव्यक्ति करता है। इसलिए कविता महान होती है और जीवन का नवनीत उसमें होता है। भले वह साहित्य की अन्य विधाओं की तरह बिकाऊ न हो लेकिन कविता का बचे रहना मनुष्यता के हित में है।' यह कहना था भारतीय भाषा परिषद के मंत्री नंदलाल शाह का। वे बुधवार की शाम भारतीय भाषा परिषद की ओर से उसके सभाकक्ष में आयोजित कवि गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में शैलेन्द्र, डॉ.अभिज्ञात, नील कमल, डॉ.ऋषिकेश राय, कुमार विश्वबंधु, जितेन्द्र जीतांशु, राज्यवद्ध्र्रन, नंदकिशोर एवं जीवन सिंह ने अपने काव्यपाठ से रसिक श्रोताओं का मन मोह लिया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए 'वागर्थ' के सम्पादक एकांत श्रीवास्तव ने कहा कि आठवें दशक के बाद की कविता पर आरोप लगाये जाते रहे हैं कि वह एकरूपता की शिकार है, इस धारणा को यह कार्यक्रम खारिज करता है क्योंकि विभिन्न कवियों ने समाज व जीवन के विविध पहलुओं को उजागर किया है। उनमें न तो दोहराव है और ना ही एकरूपता है।
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