10/19/2016

एक सम्बंध पर नये विमर्श की कथा

पुस्तक समीक्षा
समीक्षक-अभिज्ञात
अन्या से अनन्या/प्रभा खेतान/प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन, 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग,नयी दिल्ली-110002/मूल्य-250रुपये


उत्तर आधुनिक सम्बंधों पर एक जबर्दस्त विमर्श के साथ आयी है सुपरिचित उपन्यासकार व पूर्व कवयित्री प्रभा खेतान की आत्मकथा अन्य से अनन्या। अब तक जो आत्मकथाएं आयी हैं विवाहेतर सम्बंधों को लेकर उसमें दाम्पत्य जीवन का विघटन था। एक परिवार को छोड़कर दूसरा परिवार बसाने की बातें थीं। एक का साहचर्य नहीं भाया तो दूसरे को अपनाया गया था। सम्बंधों पर साफगोई से स्वीकारोक्तियों के संदर्भ में जो आत्मकथाएं याद की जाती हैं उनमें एक कृति का और इज़ाफा हुआ। दशकों पहले अमृता प्रीतम ने रसीदी टिकट के जरिये तहलका मचाया था, हालांकि उनकी सारी बातों पर उनकी रुमानियत भारी पड़ी थी किन्तु इसमें संघर्ष का स्वर प्रबल है अपने प्रिय पुरुष के साथ अपने सम्बंध को लेकर। एक विख्यात चिकित्सक के पारिवारिक जीवन में उनका प्रवेश एक दूसरी औरत के रूप में होता है। किन्तु यह रिश्ता प्रगाढ़तर होने के बावज़ूद दूसरे रिश्तों को विच्छिन्न कर अपनी जगह नहीं बनाता बल्कि वह अपने लिए एक अलग स्पेस बनाता है। सारे सम्बंध अपनी जगह क़ायम हैं किन्तु एक और रिश्ता बनता है चिकित्सक के परिवार के बीच उनका। एक ऐसा ऐसा रिश्ता जो समाज में विद्यमान तो पहले से था कई लोगों के जीवन में किन्तु वह एक छिपा रिश्ता था। सम्बंध उजागर होने पर हिकारत के साथ देखा जाने वाला। हीनताग्रंथियों से लबरेज किन्तु यहां प्रभा खेतान इस रिश्ते को एक नयी अर्थवत्ता देती हैं। परिभाषित रिश्तों से मुठभेड़ लेती हुई। यही है उत्तर आधुनिक जीवन का सौन्दर्य, जिसकी साहित्यिक जगत में कुछेक वर्ष पहले चर्चा शुरू हुई थी। आधुनिकता में जहां रिश्तों में विघटन है वहीं उत्तर आधुनिकता में हर सम्बंध के लिए अपना स्पेस।
डा.प्रभा खेतान की यह आत्मकथा औपन्यासिक ढर्रे की है तथा घटनाएं नाटकीयता से साथ उपस्थित होती हैं, जो पाठक की दिलचस्पी को बरकरार रखता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उनकी औपन्यासिक कृतियों का घटनाक्रम और परिवेश भी अपने आसपास का है जो इस कृति से उजागर होता है। अनुभूत जीवन को कथा बना देने की लियाकत उनमें पयाप्र्त है। नारीवादी आन्दोलनों के प्रति सहानुभूति रखने तथा एक सफल व्यवसायी होने के कारण उनके सरोकार और दृष्टि और व्यापक हुई है तथा सामाजिक बदलावों और मूल्यों के उतारचढ़ाव को भी उनकी आत्मकथा में आद्योपान्त देखा जा सकता है। एक भारतीय नारी के व्यक्तित्व विकास की महागाथा भी है यह आत्मकथा जिसके कारण इसका कृति का स्व समष्टि में परिणत हो जाता है।

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