2/11/2015

गीतांजलिश्री का पत्र अभिज्ञात के नाम

लेखकों के पत्र
(पत्र का स्केन जल्द ही इस पोस्ट के साथ होगा)
सरापता हूं पिछले संग्रह से बेहतर लगा। इसे अन्यथा मत लीजिएगा।
आज के कथाकारों में एक खास किस्म की 'टॉन्टिन्ग टोन अक्सर मिलती है जो मुझे परेशान करती है। आधा गांव के बाद राही जी की काफी कृतियों में वह है और नए युवा रचनाकारों में काफी आम है। आपकी पिछली (एक अदहन हमारे अंदर) कविताओं में उस टोन का आभास मिला था। आपके मुहावरों में ताजापन है और कुल मिलाकर भाषा असर छोडती है। विचारों की सिन्सैरिटी और इन्टैन्सिटी दोनों कविताओं में जान डालते हैं। पर याद आता है ज स्वामी पर लिखी कविता मुझे उतनी नहीं रुची।
26 जून 92
सेंटर फॉर सोशल स्टडीज
साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी कैंपस, उधना मगदुला रोड, सूरत 395007

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